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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 वादीभसिंह का समय व जन्मस्थान : यद्यपि वादीभसिंह के जन्मस्थान का कोई उल्लेख नहीं मिलता तथापि आपके ओडयदेव नाम से भुजबल शास्त्री ने अनुमान लगाया कि आप मद्रास प्रान्त के अन्तर्गत तमिल प्रदेश निवासी हैं तथा बी. शेषगिरि राव एम. ए.ने कलिंग तेलेगू के गंजाम जिले के आसपास का निवासी होना बतलाया है। गंजाम जिला मद्रास के एकदम उत्तर में और अब उड़ीसा में जोड़ दिया गया है। वहाँ राज्य के सरदारों की ओडय और गोडय नाम की दो जातियाँ है जिनमें पारस्परिक सम्बन्ध भी हैं अतएव उनकी समझ में वादीभसिंह जन्म से ओडय या उड़िया सरदार रहे होंगे। पं. के. भुजबल शास्त्री के अनुसार- यद्यपि इनका जन्म तमिल इनके जीवन का बहुभाग मैसूर प्रांत में व्यतीत हुआ था और वर्तमान मैसूरप्रान्त पोम्बुच्च ही आपके प्रचार का केन्द्र था। इसके लिए पोम्बुच्च एवं मैसूर राज्य के विभिन्न स्थानों में उपलब्ध आपसे सम्बन्ध रखनेवाले शिलालेख ही ज्वलन्त साक्षी हैं। वादीभसिंह का समय : वादीभसिंह ने गद्य चिन्तामणि की पूर्वपीठिका में पुष्पसेन को अपना गुरू घोषित किया। श्री पुष्पसेन मुनिरेव पदं महिम्नो देवःसमस्य समभूत्य महान सधर्मा श्री विभ्रमस्य भवनं ननु पदमेव पुष्पेषु मित्रमिहयस्य सहस्रधर्मा।। वह पष्पसेन ही महिमा के स्थान थे जिनके कि वह महान अकलंकदेव सधर्मा गुरूभाई थे निश्चय से पुष्पों में वह कमल ही लक्ष्मी के विलासों का घर होता है। जिसका सूर्य मित्र होता है। इस श्लोक में पुष्पषण को अकलंक का सधर्मा गुरूभाई बतलाया गया है। सम्भवतः यह पुष्पषेण मुनि वही हैं जिन्हें गद्यचिन्तामणि के प्रारम्भ में वादीभसिंह ने अपना गुरूभाई बतलाया है। उसी प्रशस्ति में वादीभसिंह उपाधि के धारक (आचार्य) अजिसेन का उल्लेख मिलता है जो वादीभसिंह ही जान पड़ते हैं। पुष्पषेण अकलंक के गुरूभाई थे एवं वादीभसिंह उनके शिष्य थे अतः वादीभसिंह का समय (असितत्व) अकलंक के बाद ही सिद्ध होता है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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