SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 आचार्य वादीभसिंह और उनका क्षत्रचूडामणि - अनिल कुमार जैन संस्कृत साहित्य में साहित्य के तीन भेद किये गये “गद्यपद्यचम्पूरित्यभिधीयते” अर्थात् गद्यसाहित्य, पद्य काव्य और चम्पू काव्य, संस्कृत में जितना विकास गद्य साहित्य का हुआ है उतना ही पद्य काव्य एवं चम्पू काव्य का विकास हुआ है। इसी प्रकार का एक चम्पूकाव्य आचार्य वादीभसिंह विरचित क्षत्रचूड़ामणि है जिसका चम्पू काव्य में एक उत्कृष्ट स्थान है। आचार्य वादीभसिंह इस नाम की निरुक्ति पर जब हम ध्यान देते हैं तब ऐसा लगता है कि यह नाम इनका जन्मजात न होकर पाण्डियोत्यापार्जित उपाधि है। अतः ओडयदेव यह उनका जन्मजात नाम है और वादीभसिंह (वादीरूपी हाथियों को जीतने के लिए सिंह की) उपाधि है। श्रवणवेलगोला के शिलालेख नं ५४ की मल्लिषेण प्रशस्ति मेवादीभसिंह उपाधि से युक्त एक आचार्य अजितसेन का उल्लेख किया गया है। बहुत कुछ सम्भव है कि यह उपर्युक्त वादीसिंह ही हो और अजितसेन यह उनकी मुनि अवस्था का नाम हो क्योकि अधिकतर दीक्षा के समय जन्मजात नाम को परिवर्तित कर दूसरा नाम रख देने की परम्परा साधुओं में बहुत समय से प्रचलित है तथा प्रशस्ति में दिया हुआ वादीसिंह पद उपाधि सूचक ही है। विशेषण सूचक नहीं क्योकिमदवदखिलवादीभेन्द्र कुमपभ्भेदी - १. मदयुक्त समस्त वादीरूपी गजराजों के गण्डस्थलों को विदीर्ण करने वाले इस तृतीय पद से गतार्थ हो सकता है। श्री टी.एस. कुप्पूस्वामी श्री पं. कैलाशचंद जी शास्त्री और पं. के. भुजबल शास्त्री ने भी उक्त अभिशाप स्पष्ट किया है गद्यचिंतामणि की पूर्वपीठिका के षष्ठम श्लोक में आचार्यदेव ने अपने गुरू का नाम पुष्पसेन घोषित किया है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy