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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 57 भूकम्प आदि उत्पातों के समय में सिद्धांत ग्रन्थों का पठन-पाठन वर्जित है। स्तोत्र, आराधना, धर्मकथादि ग्रन्थ बाँचे जा सकते हैं। ५- विनयाचार- शुद्धि जल से हाथ, पाँव धेकर शुद्धि निर्मल स्थान में पद्मासन बैठकर नमस्कार पूर्वक शास्त्रादिक के पढ़ने को विनयाचार कहते हैं। ६- बहुमानाचार- ज्ञान का, शास्त्र का और पढ़ाने वाले का पूर्ण आदर करना बहुमानाचार है। ७- अनिन्हवाचार- जिस गुरु से या जिस शास्त्र से ज्ञान प्राप्त हो सके, उसके न छिपाने को अनिन्हवाचार कहते हैं। संदर्भ : १. इत्याश्रित सम्यक्त्वैः सम्यग्ज्ञानं निरूप्य यत्नेन । आम्नाययुक्तियोगैः समुपास्यं नित्यमात्महितैः । पुरुषार्थसिद्धयुपाय-३१ २. गृहीतमगृहीतं वा स्वार्थं यदि व्यवस्यति । तन्न लोके न शास्त्रेषु विजहाति प्रमाणताम्। तत्त्वार्थलोकवार्तिक १-१०-७९ ३. स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम्। परीक्षामुख १/१ ४. स्याद्वादप्रविभक्तार्थ विशेष व्यंजको नयः । आप्तमीमांसा १०६ ५. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, २६७ ६. सर्वार्थसिद्धि, १/३३ ७. नयचक्र गाथा ४१९-४२७ ८. पृथगाराधनमिष्टं दर्शनसहभावनोपि बोधस्य लक्षणभेदेन यतो नानात्वं सम्भवत्यनयोः । पुरुषार्थसिद्धयुपाय ३२ ९. पुरुषार्थसिद्धयुपाय की पं. मक्खनलाल स्त्री की तिलक कृत टीका ३२ १०.कर्त्तव्यो धयवसायः सदनेकान्तात्मकेषु तत्त्वेरू । सशयविपर्ययानधयवसायविविक्तमात्मरूपं तत् । पुरुषार्थसिद्धयुपा, ३५ ११. पुरुषार्थसिद्धयुपाय की पं. मक्खनलाल मिस्त्री की तिलक कृत टीका ३५ १२. तत्त्वार्थवार्तिक ४/४२/४ १३ कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा २६१ १४. प्रवचनसार १४१ १५. अनेकान्तोऽपि द्विविधः सम्यगनेकान्तो मिथ्यानेकान्त इति । तत्त्वार्थवार्तिक १/६/७ १६. स्वयंभूस्तोत्र १०३ १७. परस्परविरुद्धकोटिस्पर्शज्ञानं संशयः यथा स्थाणुर्वा पुरुषो वेति । न्यायदीपिका १८. पुरुषार्थसिद्धयुपा, ३६ - निदेशक- राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान श्री धवलतीर्थम् श्रवणबेलगोला -हासन (कर्नाटक) -५७३१३५ मो. 09008287024
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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