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________________ 25 अनेकान्त 671, जनवरी-मार्च 2014 हो रही हैं फिर वह अग्नि प्रचण्ड रूप धारण कर लेती है और हृदय में स्थित कमल को जला देती है। जिस कर्मचक्र को रेफ की अग्नि जलाती है, वह हृदय में स्थित कमल अधोमुख वाला और आठ पत्रों का होता है। इसके आठों पत्रों पर क्रमशः ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय नामक आठ कर्म अंकित हैं जो आत्मा को घेरे हुए हैं। इस कमल के आठों दलों को कुंभक पवन के बल से खोलकर/ फैलाकर उक्त "ह" वीजाक्षर के रेफ से उत्पन्न प्रबल अग्नि से भस्म किया जाता है। यह अग्नि मस्तक तक पहुँच जाती है और वहाँ से अग्नि की एक लकीर बायीं और नीचे और दूसरी दायीं और नीचे की तरफ उस साधक के आसन तक पहुंच जाती है तथा आसन के आधार पर चलकर एक दूसरे से मिल जाती हैं और इस प्रकार से एक त्रिकोण की आकृति बन जाती है। वह अग्नि मण्डल रं रं रं बीजाक्षरों से व्याप्त है तथा उसके अन्त में स्वास्तिक चिह्न है। यह अग्नि धूप से रहि व अत्यधिक दैदीप्यमान है अपनी ज्वालाओं के समूह से नाभि में स्थित कमल और शरीर को भस्म करके जलाने योग्य पदार्थ के न रहने पर अपने आप शान्त हो जाती है। कर्मभस्म शेष रह जाती है। इस प्रकार आग्नेयी धारणा के माध्यम से चिन्तन कर साधक श्वसना (मारुती) धारणा का अवलम्बन ले लेता है। श्वसना (मारुती) धारणा - इसके आश्रय पूर्वक विचार करता है कि आकाश में प्रचण्ड वायु उठ रही है।३५ और वह इतनी वेगवान् है कि समेरु पर्वत को कम्पित कर रही है और वह देवों की सेना के समूह को चलायमान कर रही है। वह धीरे-धीरे दसों दिशाओं में फैल रही है। पृथ्वी तल को विदीर्ण करके भीतर प्रवेश कर रही है। आग्नेयी धारणा ध्यान द्वारा कर्म भस्म को संचित करके अपने वेग से उड़ा ले जा रही है। वायु के द्वारा समस्त कर्म भस्म उड़ा दी जाती है। आत्मा मात्र शेष रह जाती है। यही चिन्तन इस धारणा के माध्यम से ज्ञानार्णव में बताया जाता है।३६ मारुती (श्वसना) धारणा के साधक कर्म भस्म को उड़ा देता किन्तु उसकी छाया या छाप रह जाती है उसको साफ करने के लिए वारुणी धारणा
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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