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________________ अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 का आश्रय ग्रहण करता है। वारुणी धारणा - इसमें साधक सोचता है कि आकाश काले-काले बादलों से आच्छादित है और चारों ओर घनघोर घटाएँ घिरी हुई हैं। बिजली चमक रही है एवं इन्द्रधनुष दिखाई दे रहा है, बीच-बीच में होने वाली गर्जनाओं से दिशाएँ कम्पित हो रही हैं। जल की धाराएं हमारे ऊपर गिर रही हैं मेरी आत्मा पर लगी हुई कर्म भस्म की छाप को धोकर साफ कर दिया है। मेरी आत्मा स्फटिक मणि के समान स्वच्छ और निर्मल हो गयी हैं ऐसा चिन्तन करना वारुणी धारणा है। ऐसा ही चिंतन योगशास्त्र में करने को कहा है। इसके बाद तत्त्वरूपवती धारणा का चिन्तन है।३९ तत्त्वरुपवती धारणा - इस धारणा के माध्यम से साधक ऐसा चिन्तन करता है कि मेरी आत्मा सात धातु से रहित है और पूर्ण चन्द्रमा के समान निर्मल है, मेरी आत्मा सर्वज्ञ है। मेरी आत्मा अतिशय युक्त सिंहासन पर आरुढ़ है और इन्द्र, धरणेन्द्र और दानवेन्द्र, नरेन्द्र आदि से पूजित है। मेरे समस्त आठों कर्म नष्ट हो गये हैं और मैं कर्म रहित पुरुषाकार हूँ एवं मेरा शरीर ज्ञानमात्र है। ऐसा चिन्तन करना ही तत्त्व रूपवती धारणा है। इस प्रकार पांचों धारणाओं से युक्त पिण्डस्थ ध्यान का अभ्यास करने वाले ध्याता को मन्त्र, माया, शक्ति जादू आदि से कोई हानि नहीं होती है। प्रथम धारणा द्वारा साधक अपने मन को स्थिर करता है, दूसरी से शरीर कर्म को नष्ट करता है, तीसरी से कर्म के सम्बन्ध को भिन्न देखता है, चौथी धारणा से अपने शुद्धात्म तत्त्व का अवलोकन करता है। पांचवी से कर्मरहित शुद्धात्मा का अनुभव करता है। इस प्रकार से साधक इस ध्यान के अभ्यास से मन एवं चित्त को एकाग्र करके शुक्लध्यान में पहुँचने की स्थिति को प्राप्त कर लेता है। पदस्थ ध्यान - “पदस्थ मन्त्र वाक्यस्थम्” अर्थात् मन्त्र वाक्यों में जो स्थित है, वह पदस्थध्यान है। इस ध्यान का मुख्य आलम्बन शब्द या पद है। इस ध्यान के द्वारा साधक अपने को एक ही केन्द्र बिन्दु पर केन्द्रित करते हुए मन को अन्य विषयों से पराभूत कर लेता है और केवल सूक्ष्म वस्तु का ही चिंतन करता है। आचार्य शुभचन्द्र ने कहा है कि “पवित्र पदों का आलम्बन लेकर जो अनुष्ठान या चिन्तन किया जाता है। वह पदस्थ
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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