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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 स्वभाव अर्थ पर्याय - प्रदेशत्व गुण अतिरिक्त अन्य समस्त गुणों का जो विकार बिना किसी दूसरे के निमित्त से हो, उसे स्वभाव अर्थ पर्याय कहते हैं *जैसे जीव के ज्ञानादिगुण सिद्धावस्था में भी जीव के अनन्त ज्ञानादि गुणों में सूक्ष्मवर्तन होता रहता है इसीलिए यह जीव की स्वभाव अर्थ पर्याय है। अणुरूप पुद्गल द्रव्य में स्थित रूप रस गन्ध, वर्ण पुद्गल की स्वभाव अर्थ पर्याय हैं। विभाव अर्थ पर्याय - प्रदेशत्व गुण के अतिरिक्त अन्य समस्त गुणों का जो विकार पर निमित्त से उत्पन्न होता है, उसे विभाव अर्थ पर्याय कहते है। जीव के राग द्वेषादि परिणाम कर्म पुद्गलों से उत्पन्न होने वाला सूक्ष्म परिवर्तन है। इसीलिए उसे विभाव अर्थ पर्याय कहा जाता है। स्वभाव-व्यञ्जन पर्याय - प्रदेशत्व गुण के विकार को व्यञ्जन पर्याय कहते हैं, जिस व्यञ्जन पर्याय में किसी दूसरे के निमित्त के बिना अपने स्वभाव से ही परिवर्तन होता है, उसे स्वभाव व्यञ्जन पर्याय कहते हैं। जीव की सिद्ध पर्याय में कोई अन्य निमित्त नहीं है। अपनी स्वाभाविक शक्ति से ही वह इस पर्याय को प्राप्त करता है और चरमशरीर से किञ्चित् न्यून देहाकार में स्थित होता है। विभाव व्यञ्जन पर्याय - प्रदेशत्व गुण को जो विकार दूसरे पदार्थ के निमित्त से होता है, वह विभाव व्यञ्जन पर्याय कहलाता है। जैसे जीव की नरक तिर्यञ्चादि पर्याय। पुद्गल की द्वयणुकादि पर्याय।
स्वभाव अर्थ पर्यायें बारह प्रकार की होती हैं। छह बृद्धिरूप तथा छह हानिरूप। अर्थात् अनन्त भाग वृद्धि, असंख्यात भाग वृद्धि, संख्यात भाग वृद्धि, संख्या गुणवृद्धि, असंख्यात गुण वृद्धि, अनन्त गुण वृद्धि। छह हानि- अनन्त भाग हानि, असंख्यात भाग हानि, संख्यात भाग हानि, संख्यात गुण हानि, असंख्यात गुण हानि, अनन्तगुण हानि।२।।
विभाव अर्थ पर्यायें छह प्रकार की होती हैं- मिथ्यात्व, कषाय, राग, द्वेष, पुण्य, पाप। ये छह अध्यवसाय विभाव अर्थ पर्याय जानना चाहिए।
___ स्वभाव पर्यायें सभी द्रव्यों में होती है किन्तु विभाव पर्याय जीव और पुद्गल मात्र में होती है। द्रव्य और गुणों में स्वभाव पर्यायें होती हैं और कर्मकृत विभाव पर्यायें होती हैं। पुद्गल में विभाव पर्यायें काल प्रेरित होती है, जो स्निग्ध