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________________ अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 35 ५. शान्तिकर्म में अन्यमत की विधि का अनुसरण करना । जैनधर्म की विधि की अवहेलना करना। ६. ग्रहों की पूजा करना, कराना । ७. ग्रह शान्ति के लिये देवी देवताओं की आराधना करना । जन्म दिन, नाम संस्कार, विवाह, अन्तिम संस्कार में विसंगतियाँ : १. जन्म दिन मनाने की विधि पाश्चात्य संस्कृति की पोषक होना। इसे वर्ष वर्धन संस्कार की आगमोक्त विधि से करना चाहिये । २. नामकरण संस्कार आदि की विधि में धार्मिक पूजा, मंत्र आराधना, जाप हवन आदि की मुख्यता न होकर दिखावा प्रदर्शन में ज्यादा समय लगाना। ३. जैनागमानुसार नाम एवं नामकरण की विधि न होना । सात सात शर्तों के साथ देव शास्त्र गुरु की साक्षी में लिये गये संकल्प की धार्मिक क्रिया है। जिसे जैनधर्मानुसार न करके जल्दबाजी में अन्य धर्म के विद्वान से करवाना। ४. विवाह की क्रियाएँ रात्रि में करना । ५. भोजन में जैनत्व विरोधी वस्तुओं (आलू, प्याज, लहसुन) एवं अभक्ष्य पदार्थो का प्रयोग करना । ६. रात्रि भोजन कराना। ७. रागोत्पादक नृत्य करना / कराना, शराब पीना । अन्तिम संस्कार की विसंगतियाँ : मरण के उपरान्त शव का अभिषेक एवं संस्कार करना आज प्रमुख विसंगति है। आचार्य कहते हैं कि मृत्यु के बाद अन्तर्मुहूर्त में शव में जीवों की उत्पत्ति होने लगती है। जितनी देरी लगती है उतनी जीवों की उत्पत्ति ज्यादा होती है। अतः शीघ्र ही शव का दाह कर देना चाहिये। किन्तु बोली लगाना, अभिषेक करना आदि में समय व्यतीत होने से जहाँ जीवों की अधिकता हो जाती है वहीं अभिषेक की क्रिया भी उद्देश्य हीन हो जाती है। रक्षाबंधन, दीपावली, होली, हरयाली तीज : रक्षाबंधन मुनिराजों के उपसर्ग दूर होने और धर्म की रक्षा होने के कारण मनाया जाता है। जब विष्णुकुमार मुनि ने बलि राजा को पराजित कर धर्म की रक्षा की, मुनिराजों का उपसर्ग दूर किया तब वहाँ श्रावकों ने भी धर्म
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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