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________________ 58 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 __ "सुगतो यदि सर्वज्ञः कपिलो नेति का प्रमा। तावुभौ यदि सर्वज्ञौ मतभेदः कथं तयोः।। १२ इस वचन से स्पष्ट होता है कि शास्त्रवचनों से किसी के सर्वज्ञ होने का निर्णय करना दुरुहतर कार्य है। यह अन्योन्याश्रित होने से अप्रमाण भी होगा। कोई सर्वज्ञ प्रत्यक्षतः उपलब्ध भी नहीं है। फिर कैसे कोई सर्वज्ञ होता है, यह मान लिया जाये। समन्तभद्र ने संभवतः इसी का समाधान करने के लिये निम्न करिकायें लिखीं हैं - "सूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः प्रत्यक्षाः कस्यचिद्यथा। अनुमेयत्वतोऽग्न्यादिरिति सर्वज्ञसंस्थितिः।। स त्वमेवासि निर्दोषो युक्तिशास्त्राविरोधिवाक्। अविरोधो यदिष्टं ते प्रसिद्धेन न बाध्यते॥१३ यहाँ अनुमान प्रमाण से सर्वज्ञ की सिद्धि की गयी है जो दार्शनिक जगत् में सर्वाधिक प्राचीन प्रतिपत्ति मानी जा सकती है। यहाँ “सूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः कस्यचित् प्रत्यक्षाः" यह प्रतिज्ञा वाक्य है। “अनुमेयत्वात्" यह हेतु वचन है। “यथा अग्न्यादिः" यह उदाहरण है। इसका मतलब यह है कि स्वभाव से विप्रकृष्ट सूक्ष्मपदार्थ परमाणु आदि, कालविप्रकृष्ट अन्तरितपदार्थ राम रावण आदि तथा देशविप्रकृष्ट दूरस्थपदार्थ मेरु पर्वत आदि किसी के लिये प्रत्यक्ष होते हैं क्योंकि वे हमारे अनुमान का विषय है। जो अनुमान का विषय होता है वह किसी के लिये प्रत्यक्ष होता है। जैसे पर्वत पर मौजूद अग्नि धूमदर्शन से अनुमेय होती है तो किसी को प्रत्यक्ष भी होती है। यहाँ सूक्ष्म पदार्थ परमाणु हमारे लिये अनुमान गोचर है। स्कन्ध की अन्यथानुत्पत्ति परमाणु के साथ है और अपना अविनाभाव सम्बन्ध द्योतित करती है। इसीलिये किसी स्कन्ध को देखकर यह परमाणुओं के मेल से बना है, यह ज्ञान होता है। इस प्रकार परमाणु अनुमेय हैं। ऐसे ही पिता से पुत्र की उत्पत्ति होती है मेरे पिता की भी पुत्र के रूप में उत्पत्ति अपने पिता से हुई होगी। उनके पिता की अपने पिता से हुई होगी। इस प्रकार सुदीर्घ पितृ परम्परा का ज्ञान हमें अनुमान से होता है, अतः वे हमें अनुमेय हैं। ऐसे ही निकटवर्ती पर्वत, नदी आदि को देखकर सुदूरवर्ती नदी आदि का अनुमान संभव है, अतः वे भी अनुमेय हैं। ये सभी हमारे अनुमेय है। इसलिये किसी के प्रत्यक्ष भी हैं। इस प्रकार सूक्ष्म अन्तरित दूरवर्ती पदार्थ जिसके प्रत्यक्ष हैं वही तो सर्वज्ञ है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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