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________________ 57 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 ये सब तो मायावियों में भी दिखाई देने लग जाती हैं। आपका दिखाई देने वाला अन्तरंग एवं बहिरंग विग्रहादि महोदय भी यद्यपि दिव्यता और सत्यता को लिये हुये हैं तथापि उनके कारण से तुम महान् नहीं हो सकते क्योंकि वे तो रागादि स्वरूप वाले स्वर्ग के देवों में भी होते हैं।" यहाँ अभिलक्षित विग्रहादि महोदय, चामरादि विभूतियाँ और देवागमादिक प्रवृत्तियाँ तीर्थकरों की होती हैं, यह जानते हुये भी समन्तभद्र उनके सद्भाव से ही किसी तीर्थकर को महान् मानने को तैयार नहीं है। इसका कारण यह है कि उस समय तक सुगत आदि अनेक तीर्थकर प्रस्थापित हो चुके थे। किन्तु उनके तीर्थकरत्व स्वरूप समय यानि शास्त्र परस्पर विरोधी प्ररूपणा करने वाले होने से अपने तीर्थकरों की आप्तता को सिद्ध करने में असमर्थ थे। उन तीर्थकरों के उपदेश में की गयी वस्तु विवेचना भी पारस्परिक मतभेदों को द्योतित कर रही थी, जिससे वे सभी के सभी तीर्थकर आप्त नहीं हो सकते थे क्योंकि आप्त तो सत्य वस्तु का प्ररूपक होता है और सत्य वस्तु तो सर्वदा सर्वत्र सभी के लिये समान ही होती है। वह प्ररूपणकर्ता के भेद से बदल नहीं सकती है। यदि प्ररूपणा के आधार पर आप्त का निर्णय करें भी तो इनमें कोई एक ही तो आप्त होता। यही समन्तभद्र का कहना है - "तीर्थकृत्समयानाञ्च परस्परविरोधतः। सर्वेषामाप्तता नास्ति कश्चिदेव भवेद्गुरुः।। १० इसके उपरान्त समन्तभद्र की स्पष्टोक्ति है कि जिनकी राग द्वेष आदि दोषों की और ज्ञान सामर्थ्य के आवरक कारणों की सम्पूर्णतः (सर्वथा) हानि हो चुकी है, उन तीर्थकरों को आप्त माना जा सकता है। जैसे किसी पुरुष विशेष में अंतरंग और बहिरंग मलों का नाश उसके अपने कारणों के मिल जाने पर देखा जाता है वैसे ही किसी पुरुष विशेष में पाये जाने वालो दोषों और आवरणों की हानि भी उसके अपने कारण मिलने पर संभव होती है। यह हानि न्यूनाधिक भी देखी जाती है, जिससे यह अनुमान किया जा सकता है कि किसी में यह हानि सातिशय होने से सर्वाधिक या सम्पूर्ण भी होती है। रागादि दोषों की सम्पूर्ण हानि होने से वीतरागता और आवरणों (ज्ञान के आवरक की कारणों) की सम्पूर्णतः हानि हो जाने से सर्वज्ञता प्रगट हो जाती है, यही परम आप्त होने की अपरिहार्य योग्यता है।
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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