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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 यहाँ यह भी जान लेना चाहिये कि सर्वज्ञ को हम प्रत्यक्ष से सिद्ध नहीं कर सकते हैं तो कोई भी सर्वज्ञ नहीं है, कहीं पर भी सर्वज्ञ नहीं है, कभी भी कोई सर्वज्ञ नहीं होता है - यह भी सिद्ध नहीं कर सकते हैं। सर्वकाल और सर्वदेश में सभी को जानकर ही यह कहा जा सकता है कि कोई सर्वज्ञ नहीं है। यदि बिना जाने कहेंगे कि सर्वज्ञ नहीं है तो कथन की प्रामाणिकता नहीं होगी तथा जानकर कहे जाने पर कहने वाला ही सर्वदेश और सर्वकालवर्ती सर्व को जानने वाला होने से सर्वज्ञ कहलायेगा। इस प्रकार कोई सर्वज्ञ हो सकता है यह सिद्ध करने के उपरान्त समन्तभद्र ने घोषणा कर दी कि हे भगवन्! वह सर्वज्ञ तुम ही हो क्योंकि तुम निर्दोष हो। आपकी वाणी अर्थात् संसार मोक्ष और उनके कारणों का कथन करने वाली देशना भी युक्ति और शास्त्र से अविरुद्ध स्वभाव वाली है इसलिये आप युक्तिशास्त्राविरोधी वाक् हो। (युक्तिशास्त्राभ्यामविरोधिनी वाक् यस्य स त्वमेव युक्तिशास्त्राविरोधिवाक् इति) हे भगवन् ! आपके वचनों में कोई विरोध या विसंवाद भी नहीं है। इसका कारण आपके इष्ट तत्त्व अर्थात् संसार मोक्ष और उनके कारणों की प्ररूपणा करने रूप उपदेश में किसी भी प्रसिद्ध प्रमाण से बाधा नहीं आती है। किन्तु आपके उपदेशामृत से वञ्चित या आपके मत को न मानने वाले अर्थात् आपके स्याद्वाद मत से बाह्य जन जो सर्वथा एकान्तस्वरूप वस्तु की प्ररूपणा करते हैं और आप्त न होते हुये भी आप्तविभमान से दग्ध हैं। उनका स्वेष्ट प्रत्यक्ष प्रमाण से बधित हो जाता है।४ क्योंकि वस्तु सर्वथा नित्य है या अनित्य है - ऐसे सर्वथा एकान्त के ग्रहण से रञ्चित-रोमाञ्चित या प्रसन्न होने वाले एकान्तग्रह रक्त लोग स्वपर सिद्धान्त के बैरी हैं क्योंकि एकान्त की प्ररूपणा करने से लोक विरूद्धता आ जाती है। इस प्रकार स्वपर सिद्धान्त के वैरी सर्वथैकान्तवादियों के यहाँ पुण्य-पाप कर्म एवं परलोक का होना कहीं पर किसी भी प्राणी मं सिद्ध नही होता है जबकि पुण्यपापादिक कुशल या अकुशल कर्म लोक जीवन में स्वतः अनुभूत होकर प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध होते हैं।यह सर्वथैकान्तवादियों के माने गये स्वेष्ट को मानने में स्वानुभवगम्य या लोक प्रत्यक्ष रूप दुष्ट प्रमाण से बाधा है।१५ सर्वथैकान्त को मानने पर प्रत्यक्ष गोचर लोक व्यवस्था किस प्रकार
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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