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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 आराधना के समाधिमरण संबन्धी सभी पारिभाषिकों में भिन्न-भिन्न प्रकार की परिस्थितियों में होने वाली भिन्न-भिन्न प्रकार की सल्लेखना व उसकी प्रक्रिया को समाहित करते हुए आचार्य शिवार्य ने समाधिपूर्वक मरण की बात की है, इसलिए वे सब सल्लेखनापूर्वक समाधिमरण की बात करते हैं। इधर संथारा, सल्लेखना और समाधिमरण को कुछ लोग बिना इनके स्वरूप को जाने हुए आत्महत्या या आत्मघात मानने की भूल कर रहे हैं, जबकि वस्तुतः संथारा, सल्लेखना या समाधिमरण आत्महत्या या आत्मघात नहीं है। वास्तव में आत्महत्या या आत्मघात या आत्महिंसा के मूल में नकारात्मक विचार है तथा वैसा करने वाला व्यक्ति समाज से लड़ने में अपने आप को अक्षम मानने लगता है और अपने जीवन को समाप्त करने को ही समस्या का एकमात्र समाधान मानने लगता है तथा तदनुसार ही वह आगे बढ़ता भी है, जबकि संसार में शरीर और आत्मा के/ जीव के संयोग मात्र तक की अवधि में निवास का नाम जीवन है, उसका इस ओर ध्यान ही नहीं जाता कि जीवन का नष्ट होना एक शरीर के विनाश-भर तक सीमित नहीं है, जीवन सतत है, एक शरीर छूटता है, फिर दूसरा जुड़ता है और यह प्रक्रिया जब तक जीवन के साथ संसार है, तब तक चलती रहती है और इसीलिए जीव के साथ कर्मों का बंधन जन्म-जन्मांतर तक चलता रहता है, समस्या का कारण यह कर्मबंधन है, न कि केवल शरीर-भर, क्योंकि जो समस्या भी उपस्थित हुई है, वह इस कर्मबंधन के कारण ही हुई है; इसलिए जीव यदि समस्या का स्थायी छुटकारा चाहता है, तो उसे कर्मबंधन से स्थायी छुटकारा पाना चाहिए, न कि केवल शरीर-भर से, आत्महत्या या आत्मघात से तो केवल उस जनम-भर का शरीर-भर छूटता है, कर्मबंधन नहीं, बल्कि कर्मबंधन तो और सघन होता है जिसका परिणाम यह होता है कि सांसारिक समस्याएं छूटने के बजाय और बढ़ती है, जबकि अर्थात् सल्लेखना और समाधिमरण समस्याओं सांसारिक समस्याओं के स्थायी समाधान का नाम है, शरीर छुटकर जब तक संसार है, तब तक अगले जनम में मिलेगा ही, पर धर्म-आराधना का अवसर जरूरी नहीं है कि अगले जनम में मिले ही, पता नहीं कि वह कब फिर मिले?... इसलिए संथारा, सल्लेखना और समाधिमरण करने वाला साधक इस जनम में मिला यह धर्म-आराधना का अवसर जाने नहीं देना चाहता और इसीलिए वह संसार
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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