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________________ अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 के सब प्रपंचों से दूर हटकर समाधिस्थ होकर जुट जाता है कर्मबंधन से स्थायी छुटकारा के लिए आत्म-साधना में, उसका मनोबल बढ़ा रहता है, जबकि आत्मघाती का मनोबल क्षीण हो चुका होता है। इसलिए संथारा, सल्लेखना और समाधिमरण आत्महत्या या आत्मघात या आत्महिंसा का यत्न नहीं है, जैसाकि कुछ लोग अज्ञान के कारण मानने लग गए हैं। जो लोग संथारा, सल्लेखना और समाधिमरण को आत्महत्या या आत्मघात या आत्महिंसा के मूल में कहीं न कहीं राग, द्वेष व कषाय की तीव्रता या सघनता होती है और उस सघनता के कारण ही आत्मघाती अपनी हत्या करने के लिए आमादा हो जाता है, यदि आप किसी भी आत्महत्या या आत्मघात या आत्महिंसा के कारण की पड़ताल करें, तो उक्त तथ्य प्रमाणित होता है, जबकि सल्लेखना धारण करने वाला साधक वीतरागी साधना में लगा होता है, इसीलिए तो वह अपनी आलोचना करता है, सबसे क्षमा याचना करता है और बड़ा निर्मोही होकर बढ़ता है सल्लेखना के पथ पर और यही कारण है कि सल्लेखना की क्रिया के मूल में शरीर के कृश करने के साथ-साथ बल है कषायों के कृश करने पर अर्थात् सल्लेखना में कषाय क्षीण होते हैं या उनकी प्रवृत्ति क्षीण होने की होती है। आत्महत्या या आत्मघात या आत्महिंसा करने वाले के मन में इस तरह का कोई विचार नहीं चलता और न उभरता है, वह तो अत्यधिक राग के कारण किसी बहुत चाही वस्तु या व्यक्ति के न मिलने के कारण या फिर किसी से अत्यधिक द्वेष के कारण अपनी इहलीला समाप्त-भर करना चाहता है बिना कुछ विचार किए हुए; इसीलिए तो यह तत्य है कि आत्महत्या या आत्मघात या आत्महिंसा करने वाले के कषाय इतने प्रबल होते हैं कि वह राग-द्वेष या मोह के आवेश मं आकर विष, शस्त्र या आग आदि के द्वारा उतारू हो जाता है अपना घात करने पर और बन जाता है। एक और महत्वपूर्ण बात है कि बड़ा साहसी व्यक्ति ही संथारा, सल्लेखना या समाधिमरण का संकल्प ले पाता है, क्योंकि संसार में रहने वाले हर व्यक्ति की प्रवृत्ति बन जाती है किसी भी तरह जीवन को बचाने की और इसमें वह इतना मशगूल हो जाता है कि वह भूल जाता है कि जिस तरह संसार में जन्म निश्चित है, ठीक वैसे ही मृत्यु भी अवश्यंभावी है और यह मृत्यु शरीर-परिवर्तन की प्रक्रिया की एक कड़ी-भर है, इसलिए उस पर विषाद
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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