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________________ 38 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 होगी और वैसे में की गई क्रिया मुक्तिमार्ग की साधक न बनकर बाधक बन जाएगी, इसीलिए समाधिमरण से पूर्व ली जाने वाली सल्लेखना की प्रतिज्ञा में बहुत सजग रहने की जरूरत है, यदि ऐसा न हुआ, तो गंभीर हानि होने के खतरे सामने है। इस भक्तप्रत्याख्यान के संकल्प लेने की अधिकतम अवधि आचार्यों ने बारह वर्ष व न्यूनतम अवधि अन्तर्मुहूर्त मानी है। इससे भी स्पष्ट है कि ग्रहार्थी साधक और निर्यापक आचार्य दोनों के पास सल्लेखना के संकल्प लेने से पूर्व परीक्षा के लिए पर्याप्त या समुचित समय है। अविचार भक्तप्रत्याख्यान के ऊपर जो निरुद्ध, निरुद्धतर व परम निरुद्ध भेद कहे गए हैं, उनमें निरुद्ध के बारे में आचार्य कहते हैं कि जो रोग से ग्रस्त हैं और पैरों में चलने की शक्ति न होने से दूसरे संघ में जाने में असमर्थ हैं और सहसा मरण उपस्थित हो गया है, उसके अविचार निरुद्ध भक्तप्रत्याख्यान होता है। जिसके सर्पादि के काटे जाने के कारण उत्पन्न हुए रोग से तत्काल मरण उपस्थित हो जाए और जब तक बोली आदि बंद न हुई हो, उसी अंतराल में अपने आचार्य के पास जाकर अपने दोषों की आलोचना करके रत्नत्रय की आराधना में लग जाए, उस साधक के अविचार निरुद्धतर भक्तप्रत्याख्यान होता है। जिसके सर्पादि के काटे जाने के कारण उत्पन्न हुए रोग से तत्काल मरण उपस्थित हो जाने पर तत्काल बोली आदि बंद हो गई हो, परन्तु इससे पूर्व अपने आचार्य के पास जाकर अपने दोषों की आलोचना न कर सका हो, फिर भी अंतरंग में अरहंत, सिद्ध व आचार्य आदि को लक्ष्य कर अपने दोषों की आलोचना करके रत्नत्रय की आराधना में जो लग जाए, उस साधक के अविचार परम निरुद्ध भक्तप्रत्याख्यान होता है। इन तीनों प्रकार के प्रत्याख्यानों में से अविचार निरुद्ध भक्तप्रत्याख्यान यदि लोगों की जानकारी में आ जाता है, तो प्रकाश रूप व यदि साधक की साध ना में किसी के द्वारा भी विघ्न आदि उपस्थित किए जाने की संभाव्यता के कारण उसका प्रकाशित किया जाना अपेक्षित न हो और प्रकाशित न हो, तो अप्रकाश रूप के भेद से दो प्रकार का और माना गया है।" इस प्रकार उक्त चर्चा से यह बात स्पष्ट है कि सल्लेखना पूर्वक किया गया मरण ही मुक्तिमार्ग की ओर ले जाने वाला मरण है, इसलिए वही सार्थक मरण है और वही पंडितमरण और समाधिमरण भी। चूँकि भगवती
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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