SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 35 अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 कुछ चिरकाल तक उपवास करके प्रायोपगमन करते हैं। पंडितमरण के तीन प्रकारों में इंगिणीमरण भी एक है। इंगिणीमरण के बारे में विजयोदया टीका में उल्लेख आता है कि - 'इंगिणीशब्देन इंगितमानो भण्यते स्वाभिप्रायानुसारेण स्थित्वा प्रवर्त्यमानं मरणम् इंगिणीमरणम्। अर्थात् इंगिणीमरण पारिभाषिक में इंगिणी' शब्द से अभिप्राय आत्मा से लिया गया है, भाव यह है कि आत्मिक चरम अवस्था को लक्ष्य कर स्वयं अपने को समाधि में स्थिर कर किया जाने वाला मरण इंगिणीमरण है। खास बात यह है कि इंगिणीमरण में साधक अपनी वैयावृत्ति स्वयं करता है और दूसरे से नहीं करता है। इसीलिए धवला में उल्लेख आया है कि'आत्मोपकारसव्वपेक्षं परोपकारनिरपेक्षामिंगिनीमरणम्।२ इंगिणीमरण का इच्छुक साधु अपने संघ को इंगिणीमरण की विधि की साधना में सक्षम बनाते हुए अपने चित्त में यह निश्चय करे कि मैं इंगिणीमरण की साधना करूँगा, फिर शुभ परिणामों की श्रेणी में आरोहण कर तप आदि की भावना करे और फिर अपने शरीर व कषायों को कृश करे। उक्त निश्चयानुसार इंगिणीमरण का इच्छुक साधु अपने संघ के सब गणों से क्षमायाचना पूर्वक संघ को छोड़कर गुफा आदि में एकाकी आश्रय लेता है, वह कोई सहायक नहीं रखता है, गाँव आदि से शुद्ध तृण आदि को मांगकर लाकर जीवों आदि से रहित शुद्ध स्थान पर अपना संस्तरा स्वयं बनाता है, फिर पूर्व या उत्तर की ओर अपना सिर रखते हुए उस पर आरोहण करता है। अर्हतादिकों के पास रत्नत्रय में लगे दोषों की आलोचना कर शुद्ध करता है, आठों पहरों के लिए निद्रा का परित्याग कर एकाग्र मन से तत्त्वों का चिंतन करता है, षडावश्यक कर्म निश्चित रूप से करता है, अपनी परिचर्या स्वयं करता है, तीन शुभ संहननों में से कोई एक संहनन वाला होने के कारण परिचर्या स्वयं करता है, तीन शुभ संहननों में से कोई एक संहनन वाला होने के कारण बिना विचलित हुए आने वाले उपसर्ग को सहन करता है, यदि पैर में काँटा लग जाए तो आँख में धूल चली जाए, तो स्वयं दूर नहीं करता, मौन आदि का पालन करने में लीन रहता है, रोग आदि से होने वाले कष्ट को दूर
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy