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________________ 34 गतांक से आगे ... अनेकान्त 67/2, अप्रैल - जून 2014 सल्लेखना, समाधिमरण व भग. आराधना के तत्संबन्धित अन्य पारिभाषिक और आत्मघात • डॉ. वृषभ प्रसाद जैन पादोपगमनमरण में अपने पैरों से चलकर अर्थात् संघ से निकलकर उपयुक्त स्थान पर आश्रय लेने की बात है, इसलिए पैरों से चलकर उपगमनपूर्वक होने वाले मरण को पादोपगमनमरण कहा गया है, इसी पादोपगमनमरण को प्रायोपगमनमरण और प्रायोवेशनमरण के नाम से भी उद्धृत किया गया है, वहाँ प्राकृतपाठ ‘पाउग्गगमणमरणं' है। यहाँ प्रायोग्य से अभिप्राय संसार का अंत करने योग्य संहनन और संस्थान से लेना अपेक्षित है। संसार का अंत करने योग्य संहनन और संस्थान की प्राप्ति पूर्वक होने वाले मरण को प्रायोपगमनमरण और प्रायोपवेशनमरण माना गया है।' इस तरह की समाधि लेने वाला न स्वयं अपनी सेवा करता है और न दूसरों से कराता है, किन्तु इतना विशेष है कि प्रायोपगमन में तृणों के संथरे का अर्थात् तृणशय्या का निषेध है। इस प्रकार प्रायोपगमन स्व और परकृत प्रतीकार से रहित है । वैसे तो निश्चय से प्रायोपगमन अचल है, परन्तु उपसर्ग अवस्था में मनुष्य के द्वारा चलायमान किये जाने पर चल भी होता है अर्थात् स्वयं शरीर को न चलाने की दृष्टि से तो अचल है, किन्तु दूसरे के द्वारा हिलाने आदि के कारण चल है। उपसर्ग अवस्था में एक स्थान से दूसरे स्थान पर डाल दिए जाने के कारण यदि वह वहीं मरण करता है, तो उसे नीहार कहते हैं, और ऐसा नहीं होने पर पूर्व स्थान पर ही यदि मरण हो जाए, तो उसे नीहार कहते हैं और ऐसा नहीं होने पर पूर्व स्थान पर ही यदि मरण हो जाए तो वह अनीहार कहलाता है। यह भी मान्यता है कि जिनकी आयु का काल अल्प शेष रहता है, वे प्रतिमायोग धारण करके प्रायोपगमन करते हैं, इसलिए पंडित आशाधर जी की मान्यता है कि कुछ तो सल्लेखना न करके ही कायोत्सर्गपूर्वक प्रायोपगमन करते हैं और
SR No.538067
Book TitleAnekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2014
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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