SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य वीर सेवा मन्दिर में आयोजित जुगल किशोर 'मुख्तार' स्मृति व्याख्यानमाला प्रतिवेदन - 'वीर सेवा मन्दिर' दरियागंज, नई दिल्ली, देश की एक प्रमुख जैन शोध संस्था है, जिसकी स्थापना आचार्य पं. जुगल किशोर 'मुख्तार' ने सन् १९२९ में की थी। आपकी स्मृति में २३ दिसम्बर, २०१२ को एक राष्ट्रीय व्याख्यानमाला विषय "जैनधर्म और विज्ञान" पर संस्था के सभागार में आयोजित की गई, जिसमें आमंत्रित वैज्ञानिकों ने एक मत से स्वीकार किया कि जैनागमों में वर्णित विभिन्न सिद्धान्त वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा खोजे जा रहे सिद्धान्तों के समकक्ष हैं। समारोह की अध्यक्षता न्यायमूर्ति माननीय अभय गोहिल जी ने की। व्याख्यानमाला के प्रारम्भ में डॉ. नीलम जैन गुड़गाँव, जो अभी-अभी तीन माह अमेरिका में सम्पन्न धार्मिक समारोहों में सहभागिता करके लौटी हैं, ने पं. 'मुख्तार' साहब के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें चिन्तन का धनी एवं जैन वाङ्गमय पर शोध कार्य करने वाला बताते हुये कहा कि उनकी कविता 'मेरी भावना' की विदेशों में भी गूँज हो रही है। जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर में वानस्पतिक विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. अशोककुमार जैन ने "जैनधर्म एवं पर्यावरण" पर मार्मिक व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि वैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव प्रकृति सन्तुलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैनागमों में इन सूक्ष्म जीवों की रचनाओं को बहुत पहले से ही परिभाषित किया हुआ है तथा इनके संरक्षण हेतु मानव जीवन की क्रियाओं को नियन्त्रित किया गया है। उन्होंने श्रावकाचार व श्रमणाचार के सन्दर्भ में विभिन्न पहलुओं पर जानकारी देते हुए कहा कि जैनागमों में निहित विभिन्न प्रसंग एवं मान्यतायें वर्तमान कालीन विज्ञान की जन्मदाता हो सकती हैं। इन पर शोध किया जाना चाहिए। इसके पश्चात् डी.आर.डी. ओ. रक्षा विभाग से सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डॉ. एम. बी. मोदी का "वैज्ञानिक भगवान महावीर” पर प्रभावी भाषण हुआ। उन्होंने कहा कि विश्व के निर्माण में जीव- अजीव द्रव्यों की एक प्राकृतिक शाश्वत परन्तु परिवर्तनशील व्यवस्था है। इसी कड़ी में उन्होंने समयसार, पञ्चास्तिकाय, प्रवचनसार और तत्त्वार्थसूत्र में निहित विभन्न सूत्रों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बताया। यह ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं है। भगवान महावीर को विश्व का प्रथम वैज्ञानिक बताते हुए कहा कि उन्हीं के सिद्धान्तों को आइन्स्टीन, बोहर, मैक्सबोर्न, डीबोली आदि अनेक वैज्ञानिकों ने विज्ञान जगत में स्थापित कर १९८५ के बाद नोबेल पुरस्कार प्राप्त किये। इसके प्रश्चात् वीर सेवा मन्दिर से प्रकाशित दो पुस्तकों समीचीन धर्मशास्त्र जो कि आचार्य समन्तभद्र स्वामी विरचित रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका है जिसे आचार्य पं. जुगल किशोर 'मुख्तार' ने लिखा है। समाज के स्वाध्याय प्रेमियों की विशेष मांग होने पर इसका द्वितीय संस्करण, का एवं च्नतम जेवनहीजे जो कि आचार्य अमितगति द्वारा रचित सामायिक पाठ अंग्रेजी अनुवाद सहित, का तथा तीसरी पुस्तक “जैनधर्म का वैज्ञानिक चिन्तन" (लेखकप्राचार्य निहालचंद जैन, निदेशक वीर सेवा मन्दिर) का विमोचन न्यायमूर्ति माननीय अभय गोहिल
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy