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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 फिर धर्म साधना में भावना रूप प्रार्थना अति विशिष्टता लिये होती है। प्रार्थनापाठ में अहम् का त्याग कर परमतत्व के साथ तादात्म्य स्थापित कर तद्प होने का भाव जाग्रत होता है। पं. नवरत्न ने 'अन्तलालसा' नाम से बारह छन्द रचे जो जैनधर्म में बड़े लोकप्रिय है। इसी के उदाहरण देखिये : जो अति निर्मल परम ज्योति है, मुक्ति मार्ग का नेता है। अतुल अनन्त शक्तिशाली है, कर्म मात्र का जेता है। जो है विश्वतत्व का ज्ञाता, नयवाली जिसकी वाणी। उसको, उसके गुण पाने को नमकर मैं जोहूँ पाणी। सद्गुरु ही है मेरे तो प्रभु तीर्थ-देव, आदर्श सभी उनका अनुगामी होने में, मैं रक्खू न प्रमाद कभी है अनन्त गुण उनके उनको सब प्रकार उर धारूँ मैं। एक यथार्थवादिता पर ही सरबस बपना बारू मैं॥ इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि महान राष्ट्रीय साहित्यकार पं. गिरिधर शर्मा 'नवरत्न' का जैन धर्म, दर्शन से बड़ा गहरा सम्बन्ध था। यद्यपि आज पं. नवरत्न हमारे मध्य नहीं हैं परन्तु उनके ये अनुवाद जैन धर्म के सारस्वत साहित्य भण्डारों की अमूल्य निधि है जिनमें उनकी आत्मा की अनुगूंज है। संदर्भ: १. पं. गिरिधर शर्मा 'नवरत्न' का साहित्य और मूल्यांकर (अखिल भारतीय प्रबद्ध परिचर्चा स्मारिका-१९८६ झालावाड़) सं. मथुरो नन्दन कुलश्रेष्ठ पृ. ४३ पर डॉ. नरेन्द्र भानावत के शोध पत्र से २. निखिलेश सेठी (वंशज फर्म सेठ बिनोदीराम बालचन्द-बिनोद भवन, झालरापाटन) के निजी पुस्तकालय के सौजन्य से। ३. शर्मा ललित - 'झालावाड़ इतिहास, संस्कृति, पर्यटन' ग्रन्थ के अध्याय 'हिन्दी सेवी नगर और पं. नवरत्न' पार्ट।" ४. चतुर्वेदी युगल किशोर - नवरत्न काव्य शतक, पृष्ठ ३ ५. बिनोद भवन, के उक्त पुस्तकालय के संवत् १९९८ की सामग्री। ६. जैन वीरेन्द्र कुमार, देवेन्द्र कुमार - श्री सन्मति कुटीर, चन्द्रावाड़ी, मुम्बई का संग्रह संवत् २०१६ से ७. जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, सं. १९७२ का संग्रह। ८. पं. नवरत्न का शेष साहित्य लेखक के निजी संग्रह में सुरक्षित है। जैकी स्टूडियो, १३, मंगलपुरा, झालावाड़ (राजस्थान) ३२६००१
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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