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________________ अनेकान्त 66/1 जनवरी-मार्च 2013 समासव्यास पद्धति से उन्होंने 'कल्याण मंदिर स्तोत्र' का भी अनुवाद किया जिसके आरम्भिक २ मूल छन्द व उनका किया गया अनुवाद भी यहां प्रस्तुत है। इस मूल स्तोत्र की रचना ५वीं सदी के विद्वान आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा मानी जाती है। इस स्तोत्र में उन्होंने तीर्थंकर पार्श्वनाथ का गुण कीर्तन ४४ वसन्ततिलका छन्दों में किया तथा उसमें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को भय विनायक, कल्याणधाम एवं कमठ का मानमर्दक बताया। पं. नवरत्न ने इसी मूल भाव को अनुदित किया जिसके ३ छन्द मूल रूप में भी यहां दृष्टव्य हैं - कल्याण मन्दिरमुदारमवद्यभेदिभीताभयप्रदमनिन्दितमाङ् घ्रिपद्म । संसार सागर- निमज्जदशेषजन्तुपोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य ॥ १ ॥ कल्याण धाम, भय-नाशक पापहारी, त्यों है जहाज भव सिन्धु पड़े जनों के। निन्दाविहीन अति सुन्दर सौख्यकारी, पादारविन्द प्रभु के नम के उन्हीं को ॥१॥ यस्य स्वयं सुरगुरुगरिमाम्बुराशेःस्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्न विभुर्विधातुम् । तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतोस्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये ॥२॥ श्री पार्श्वनाथ विभु का स्तव मैं रचूँगा, जो नाथ हैं कमठ विघ्न विनाशकर्ता । त्यों है अशक्त जिनके स्तंब को बनाने, अत्यन्त वृद्धिधन भी गुरू भी सुरों का ॥२॥ पं. नवरत्न ने अष्टप्रातिहारियों का वर्णन १९ से २६ तक के छन्दों में किया। इसमें उन्होंने अशोक व प्रबोध का श्लिष्ट प्रयोग भी किया। देखें : 90 - धर्मोपदेशसमये सविधानुभावा दास्तां जनो भवति ते तरुरप्यशोकः । अभ्युद्गते दिनपती समहीरुहोऽपि किं वा विबोध मुपयाति न जीवलोकः ॥ १९ ॥ धर्मोपदेश करता जब तू, जनों की क्या बात नाथ! बनता तरु भी अशोक । होता प्रकाश जब सूरज का नहीं क्या, पाता प्रबोध तरुसंयुत जीवलोक ? ॥१९॥
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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