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पं. गिरिधर शर्मा 'नवरत्न' की जैन साहित्य को देन
ललितशर्मा
झालरापाटन निवासी (वर्तमान झालावाड़ जिला, राजस्थान) पं. गिरिधर शर्मा, 'नवरत्न' भारतीय हिन्दी साहित्य में द्विवेदी युग के एक ऐसे स्वनामधन्य व्यक्तित्व थे, जो न केवल एक राष्ट्रीय साहित्यकार थे, वरन् वे एक श्रेष्ठ अनुवादक और बहुभाषा की पांडित्य परम्परा का निर्वहन करने वाले सच्चे राष्ट्रभक्त थे।
अपने जीवन काल में (१८८१ ई. से १९६१ ई.) उन्होंने लगभग १२५ ग्रन्थों का प्रणयन किया। उन्होंने भारत की अनेक भाषाओं को हिन्दी भाषा से जोड़ने में विलक्षण भूमिका का निर्वहन किया। आजीवन हिन्दी के उत्थान में समर्पित रहे, पं. नवरत्न ने जैनधर्म के अनेक मूल ग्रन्थों तथा धार्मिक, आध्यात्मिक साहित्य के भी ऐसे अनुवाद किये कि विद्वानों ने एक राय से उनके इन कार्यों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। पं. नवरत्न द्वारा अनुदित जैन साहित्य की यह निधि बरसों से भारतीय जैन परम्परा में अल्पज्ञात व अनुपलब्ध ही रही। अतः उन पर कोई शोध कार्य भी नहीं हो पाया। पं. नवरत्न की जैन साहित्य को ऐसी अदभुत देन है जो जैन साहित्य के शोध संसार में एक महत्वपूर्ण सामग्री साबित हो सकती है जो प्रस्तुत लेख में निबद्ध किया गया है।
विद्वान् डॉ. नरेन्द्र भानावत ने पं. नवरत्न की जैन रचनाओं के अनुदित कार्यों की पूर्व में सुन्दर समीक्षा की। पं. नवरत्न की मूल उपलब्ध जैन साहित्य विषयक अनूदित सामग्री व उक्त समीक्षा को आधार बनाकर लेखन करना ही इस लेख का अभीष्ठ है। पं. नवरत्न की जैन अनुदित कुछ मूल रचनाएँ इस लेख के लेखक के पास भी सुरक्षित है जो उसे पं. नवरत्न के प्रकाशन सहयोग व उद्योगपति परिवार सेठ बिनोदीराम बालचन्द (बिनोद भवन, झालरापाटन) के वर्तमान निदेशक सेठ सुरेन्द्र कुमार सेठी - निखिलेश सेठी के निजी प्राचीन विशाल पुस्तकालय से प्राप्त हुई है।
पं. नवरत्न कृत इन सभी जैन रचनाओं के अध्ययन व प्राप्त जानकारी से ज्ञात होता है कि झालावाड़ राज्य के राजगुरु पं. गिरिधर शर्मा 'नवरत्न' का गजरात और राजस्थान से विशेष सम्बन्ध रहा है। ये प्रदेश जैन संस्कृति और साहित्य के प्रमख केन्द्र है। इन प्रदेशों में जैन आचार्यों और मनियों की बड़ी संख्या रही है और आज भी है। इन आचार्यों, मुनियों ने विविध भाषाओं को काव्य रूपों में बहुआयामी साहित्य की रचना की तथा बड़े सम्मान के साथ उदारवादी भावना से भारतीय साहित्य की बहुमूल्य विरासत का संरक्षण किया। भारत में जैन धर्म के जितने हस्तलिखित ग्रन्थ भण्डार राजस्थान और गुजरात में हैं उतने कहीं अन्यत्र नहीं हैं। इन भण्डारों में न केवल जैन साहित्य सुरक्षित संग्रहीत है वरन् जैनेतर साहित्य की दुर्लभ प्रतियाँ यहाँ पूर्ण सम्मान सहित संरक्षित हैं। पं. नवरत्न के जन्म स्थान झालरापाटन में जैन साहित्य का विशाल भण्डार श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर के ऐलक पन्नालाल पुस्तकालय तथा सेठ बिनोदीरामजी की लायब्रेरी से हजारों की संख्या में आज भी पठनीय है। इसका अध्ययन व स्वाध्याय बिनोद भवन, झालरापाटन से अनुमति लेकर किया जा सकता है।