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अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013
आचार्य विद्यानन्दि स्वामी ने भी अतिचारों के सम्बन्ध में आचार्य पूज्यपाद स्वामी और अकलंक स्वामी का ही अनुसरण किया है। एक विशेष बात यह है कि आचार्य ने यहां अतिचारों को प्रतिज्ञा, हेतु और उदाहरण के द्वारा सिद्ध किया है। व्रतों का वर्णन श्रावक के अनुरूप होने से ये समस्त अतिचार श्रावकों में ही घटित होते हैं, क्योंकि आचार्य का यह मन्तव्य है कि मुनि के व्रतों में यदि दोष लगता है तो वे अनाचार की ही कोटि में ग्रहण किया जायेगा। अतिचारों के सम्बन्ध में और अधिक देखा जाय तो पं. आशाधर जी ने सागार धर्मामृत में जुआ, चोरी, शिकार, मांस-भक्षण, मद्य, मधु, वेश्या, परस्त्री सेवन त्याग व्रत के भी अतिचार वर्णित किये हैं। यहां तक कि उन्होंने रात्रिभोजन त्याग और जलगालन के भी अतिचारों का वर्णन किया है। व्रतोद्योतन ग्रन्थ भाग-३, श्लोक ४६२-४६४ में तो पूजन, अभिषेक, मौनव्रत के भी अतिचार वर्णित किये हैं। इन सभी आचार्यों ने अतिचारों का वर्णन इसलिये किया है कि जिससे हम सभी इनका परिहार करके निर्दोष व्रतों का पालन करके स्वर्ग प्राप्त करें और परम्परा से मोक्ष की प्राप्ति कर सकें। यदि हम ऐसा कर पाये तो आचार्य उमास्वामी से लेकर आचार्य विद्यानन्दि स्वामी द्वारा अतिचारों का वर्णन करना सार्थक हो जायेगा। निरतिचार व्रतों के पालन से मुनिव्रत पालन की प्रेरणा तो मिलती ही है, तीर्थकर प्रकृति का भी बंध होता है। हम सभी निरतिचार व्रत पालन करके तीर्थकर प्रकृति का बंध करेंगे, ऐसी भावना करते हैं।
संदर्भ : १. सागार धर्मामृत ४/१८ २. परमात्म गीतिका श्लोक ९ ३. प्रायश्चित्त चूलिका श्लोक १४६ टीका ४. श्रावकाचार संग्रह भाग-४ प्रस्तावना ५. जीतसारसमुच्चय हेमनाभ प्रकरण श्लोक १०-१४ ६. तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार ७/२५ ७. तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार ७/३० ८. तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार ७/३१, त.सूत्र ७/३१ ९. तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार ७/३४ १०. तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार ७/३५ ११. रत्नकरण्डश्रावकाचार श्लोक ९० १२. तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिकालंकार ७/३६
शोध अध्येता, जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय,
लाडनूं, जि. नागौर (राज.)