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अनेकान्त 66/1 जनवरी-मार्च 2013
गुप्त चेष्टा को देखकर ईर्ष्या, लोभ आदि के वश होकर जो अन्य लोगों के समक्ष प्रकट कर देना है वह साकारमंत्रभेद है।
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यहाँ विशेष यह जानना चाहिये कि ये अतिचार कषाय की तीव्रता के कारण लोभ अथवा ईर्ष्या के वश से ही होते हैं। यदि कोई व्यक्ति अहिंसा के स्थान पर हिंसा का उपदेश देता है तो वह यही विचार करता है कि जैसे जैन पण्डित जैन शास्त्रों का उपदेश देते हैं, वैसे ही मैंने भी वेदों के अनुसार हिंसा का उपेदश दिया है, डाकुओं के अनुसार धनिकों को लूटने का उपदेश दिया है, कोई मनमानी बात नहीं की है। इसी प्रकार पति-पत्नि के रहस्य की बातें जो कही हैं वे सब पूर्णरूपेण सत्य हैं, कोई झूठ थोड़े ही है, जैसा जाना अथवा समझा वैसा ही तो बताया है। २. अचौर्याव्रत के अतिचार
इसके अतिचार निम्न हैं- चोरी करने वाले व्यक्ति को मन, वचन और काय से अन्य पुरुष से करवाता है, एवं अन्य पुरुष से कृत, कारित और अनुमोदना के अनुसार प्रेरणा करता है, वह स्तेनप्रयोग है। चोर द्वारा लाये गये चोरी के सामान कम मूल्य में ग्रहण कर लेना तदाहृतादान है। जैसे- किसी चोर ने कीमती हार चुराया उससे अत्यन्त अल्पदाम में खरीद लेना। राज्य के विरुद्ध होते हुए भी अतिक्रम करना, विरुद्धराज्यातिक्रम है। अतिक्रम अर्थात् उचित रीति से अन्य प्रकार अन्याय से देना अथवा लेना है। जैसे- टैक्स बचाना, ट्रेन का टिकट नहीं लेना, आधा टिकट लेना आदि। झूठे नाप-तौल आदि से क्रय-विक्रय का प्रयोग करना हीनाधिकमानोन्मान है। जैसेनापने तौलने के लिये काष्ठ-धातु आदि के निर्मित सेर, ढइया, पंसेरी आदि अथवा तराजू के पाव, किलो आदि एवं गज, फुट आदि को कम अथवा ज्यादा अपने अभिप्राय से रखता है। ग्रहण करते समय अधिक वजन रखता है और देते समय कम वजन रखता है। यहां भिन्न-भिन्न प्रकारों से होने वाली नाप-तौलों का ग्रहण किया जाना चाहिये। दूसरों को ठगने के लिये कृत्रिम वस्तुओं को वास्तविक वस्तुओं में मिलाकर व्यापार करना, प्रतिरूपक व्यवहार है। जैसे सोने में पीतल, दूध में चूना, काली मिर्च में पपीता के बीज आदि मिलाकर बेचना ।
यहाँ विशेष यह जानना चाहिये कि सरकार की गलत नीतियों का विरोध करना विरुद्ध राज्यातिक्रम नहीं है। जैसे- बूचड़खाने, गलत कर निर्धारण नीति, अनुचित मंहगाई और तानाशाही आदि का विरोध करना ।
४.
ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार
इसके अतिचार निम्न हैं- अन्य किसी का अथवा उसके लड़के-लड़कियों का विवाह कराना परविवाहकरण है। सातावेदनीय कर्म और चारित्र मोहनीय कर्म का उदय हो जाने से विवाह क्रिया द्वारा बंध जाना विवाह है, अन्य किसी का विवाह परविवाह है। इत्वरिका परिगृहीता गमन, इत्वरिका अपरिगृहीता गमन । परपुरुष के समीप गमन करने की आदत को धारण करने वाली स्त्री इत्वरी कही गई है। क प्रत्यय से खोटे भावों को रखने वाली कुत्सिता है। किसी नियत स्वामी के द्वारा गृहीत है वह परिगृहीता है और नियत स्वामी के द्वारा गृहीत नहीं की गई है वह अपरिगृहीता है । इस प्रकार जो इत्वरिका परिगृहीता और इत्वरिका अपरिगृहीता अर्थात् वेश्या अथवा पुंश्चली स्त्रियों के मनोहर अंगों का निरीक्षण, हास्य, सराग भाषण करना, हाथ, भ्रकुटी, आंख आदि से