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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 'कमल' प्रकृति का ऐसा सुन्दर उपहार है, जो न केवल सरोवर की शोभा बढ़ाता है, अपितु वायु व वातावरण को अपने मकरंद द्वारा सौरभमय करता है। वायु प्रदूषण के विनाश हेतु कल्याण मंदिर स्तोत्र के विभिन्न काव्य छंदों में (कोष्ठक में काव्य संख्या दर्शायी गयी है) कमल (१४,२०,४२,४३) चन्दन (८), पद्मसरोवर (७), पुष्पवृष्टि (२०), अशोकवृक्ष (१९, २४), सुमन (२८), आदि की प्रमुख भूमिका रहती है। काव्य संख्या ७ दृष्टव्य है, जिसका पद्यानुवाद निम्नांकित है - ग्रीष्म ऋतु के तीव्र ताप से, पीड़ित पंथी हुए अधीर पद्म-सरोवर दूर रहे पर, तोषित करता सरस-समीर॥७॥ अर्थात् ग्रीष्मकाल की प्रचण्डधूप से पथिकों को, कमलों से युक्त सरोवर ही सुखदायक नहीं होते, अपितु उन जलाशयों की जल-कण मिश्रित ठण्डी-२ झारें भी सुखकर प्रतीत होती हैं। पर्यावरण की दृष्टि से- हवा, जलाशय, कमल जब तक संरक्षित नहीं होंगे, तब तक शुद्ध पर्यावरण नहीं मिल सकता। इसी प्रकार काव्य क्रं. का पद्यानुवाद देखें - चन्दन के विटपों पर लिपटे, हों काले विकराल भुजंग। वन मयूर के आते ही ज्यों होते उनके शिथिलित अंग॥८॥ इसमें मलयगिरी के सघन व सुगंधित वनों में लिपटे भयंकर सर्पो का उल्लेख है। वर्तमान में चन्दन वन- पर्यावरण की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। स्तोत्र का काव्य संख्या- ११ में - विध्यापिता हुतभुजः पयसाथ येन। पीतं न किं तदपि दुर्धर वाडवेन ?॥११॥ सच है जिस जल से पल भर में दावानल हो जाता शान्त। क्या न जला देता उस जल को? वडवानल होकर अश्रान्त। वडवानक (समुद्र में उत्पन्न होने वाली अग्नि), जो समद्र के मध्यभाग से उत्पन्न होकर अपार जल राशि का शोषण कर लेती है। इस प्रकार यह पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालती है, क्योंकि इसके उत्पन्न होने से अनेक समुद्री जीव-जन्तु नष्ट हो जाते हैं। पद्य क्रमांक १३ में तुषार (वर्फ) के प्रभाव को द्योतित किया है। प्लोषत्यमुत्र यदि वा शिशिरऽपि लोके, नीलद्रुमाणि विपनानि न किं हिमानी ? ||१३।। क्या न जला देता वन-उपवन, हिम सा शीतल विकट तुषार ? अर्थात् तुषार (वर्फ) हरे हरे वृक्षों वाले वन- उपवनों को अवश्य ही जला देता है। पद्य क्रं. ३१ से ३३ तक - कमठ के द्वारा उपसर्ग का वर्णन है। पर्यावरण की दृष्टि से ये काव्य-छन्द अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वर्तमान में ऐसे अनेक कमठ हैं जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं वनस्पतियों को नष्ट व प्रदूषित कर रहे हैं।
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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