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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 हृद्वर्तिनि त्वयि विभो ! शिथिलीभवन्ति, जन्तोःक्षणेन निविडा अपि कर्मबन्धाः ॥८॥ भक्ति से भव-तारण हो जाता है जिस प्रकार मसक को तिरेन में 'उसमें' भरी वायु कारण है, वैसे ही भव समुद्र से भव्य जनों को तिरने में आपका बारम्बार चिन्तवन ही कारण है, अतः आप भवपयोधि तारक कहलाते हैं - जन्मोदधिं लघु तरन्त्यतिलाघवेन, चिन्त्यो न हन्त महतां यदि वा प्रभावः। अष्ट प्रातिहार्य वर्णन में प्रयुक्त प्रतीक कल्याण मन्दिर स्तोत्र के पद्य नं. १९ से २६ तक आठ प्रातिहार्यों का वर्णन है, जिनमें प्रयुक्त प्रतीक आत्मा के उन्नतशील बनाने की भावाभिव्यक्ति है। १. अशोक वृक्ष - भगवान् के धर्मोपदेश के समय मनुष्य की तो क्या, वनस्पति और वृक्ष भी शोक रहित यानि 'अशोक' बन जाते हैं। २. पुष्पवृष्टि - देवों द्वारा की जाने वाली पुष्पों की वर्षा से पांखुरी ऊपर और उनके डंठल नीचे हो जाते हैं, प्रतीक हैं कि भव्य जनों के कर्मबन्धन नीचे हो जाते हैं। ३. दिव्यध्वनि - सुधा समान, जिसे पीकर भव्य जन अजर अमर पद पा लेते हैं। ४. चँवर - दुरते हुए चँवर नीचे से ऊपर को जाते हैं, जो सूचित करते हैं झुककर नमस्कार करने वाला चॅवर के समान ऊपर यानी स्वर्ग/मोक्ष को प्राप्त करता है। ५. सिंहासन - सिंहासन पर विराजे पार्श्वप्रभु की दिव्यध्वनि ऐसी लगती है, जैसे सुमेरुपर्वत पर काले मेघ गर्जना कर रहे हों। ६. भामण्डल - की प्रभा से सचेतन पुरुष आपके ध्यान से राग-लालिमा को नष्टकर वीतरागता को प्राप्त हो जाता हैं। ७. दुन्दुभि - देवों द्वारा बजाये जाने वाले नगाडे व घण्टा आदि के स्वर कह रहे हैं कि प्रमाद छोड़ पार्श्व प्रभु की सेवा में उद्यत हो जाओ और ८. छत्रत्रय कल्याणमंदिर स्तोत्र एवं पर्यावरण संरक्षण पर्यावरण को विज्ञान जगत के 'इकोलॉजी' विषय के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है, यह ग्रीक भाषा का शब्द है। इको' शब्द का अर्थ है - 'घर' एवं 'लॉजी' का अर्थ होता है- 'अध्ययन करना।' अर्थात् जिस प्रकार घर की परिभाषा में भवन, उसका वास्तु, उसमें स्थित विभिन्न वस्तुएँ तथा निवास करने वाले मनुष्य होते हैं, उसी प्रकार पर्यावरण में उपस्थित समस्त चराचर, उनका परस्पर संबन्ध एवं उनके प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। जहाँ कुमुदचन्द्राचार्य का कल्याणमंदिर स्तोत्र, अर्हद्भक्ति की अपूर्वधारा बहाने वाली एक स्तुतिपरक रचना है, वहीं यह लोकमंगल और मानव कल्याण की दिशा में अभिनव रचनात्मक भूमिका का निर्माण कर, वैचारिक-आंतरिक प्रदूषण को दूर करके भाव और भावना के धरातल पर प्रेम व सौहार्द के कलपतरु उगा सकता है। इस प्रकार यह भक्ति के साथ साथ पर्यावरण का संदेश देता है।
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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