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अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013
(२) इसी प्रकार १९वें पद्य से लेकर २६वें पद्य तक भक्तामरस्तोत्र की भांति आठ प्रातिहार्यो
का वर्णन है, जो केवल दिगम्बर परम्परा में ही मान्य है। सिंहासन, भामण्डल, दुन्दुभि और छत्र प्रातिहायों का प्रतिपादन श्वेताम्बरसम्मत भक्तामरस्तोत्र (केवल ४४ पद्य) में नहीं है।
संकटमोचन कल्याणमन्दिर स्तोत्र भगवान् पार्श्वनाथ एक संकटमोचक लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इसका कारण भगवान् पार्श्वनाथ के विगत दस भवों की जीवन गाथा की वह भावदशा है, जिसमें प्रत्येक भव में आये उपसर्ग एवं कष्टों में उनका समताभावी व क्षमाशील बने रहना। प्रतिशोध की भावना भी उनके हृदय में नहीं आयी। बैरी, कमठ के जीव ने, जब वह शम्बरदेव की पर्याय में था और पार्श्वनाथ वन में तपस्या में लीन थे, उसने अवधिज्ञान से अपने अतीतकाल को याद किया और प्रतिशोध की अग्नि में जलने लगा। फिर उसने सात दिन तक भारी उपसर्ग किये। अन्त में धरणेन्द्र अपनी देवी पद्मावती के साथ प्रकट हुए और उन्होंने भगवान् को अपने फणों पर उठाकर उन उपसर्गों से रक्षा का भाव किया। अस्तु नायक की स्तुति महाभय-निवारक और कष्ट निवारक है। उदाहरणार्थ पद्य क्र.३ जलमय निवारक क्र.४, असमयनिधन-निवारक और क्र.११ जलाग्निभय-निवारक, क्र.१२ अग्निभय-निवारक और क्र.१६ गहनवन-पर्वत, भय, निवारक, क्र.२५ असाध्यरोग शामक और क्रं.२७ वैरविरोध विनाशक है।
प्रत्येक पद्य का एक विशेष मन्त्र है, जिसकी विधिवत् साधना से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। उदाहरण के लिए पद्य क्रं.४ देखें -
मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ! मर्यो,
नूनं गुणान्गणयितुं, न तव क्षमेत। कल्पान्तवान्तपयसः प्रकटोऽपि यस्मान्,
मीयते केन जलधेर्ननु रत्नराशिः॥४॥ उक्त पद्य का मंत्र है- “ॐ नमो भगवते ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं अर्ह नमः स्वाहाः।"
विधि - ९ वर्ष तक, वर्ष के लगातार ४० रविवार को १०००बार मंत्र जपने से अकालमरण व महिलाओं का गर्भपात नहीं होता है।
स्तोत्र के सृजन का इतिहास आचार्य कुमुदचन्द्र राजकीय कार्य से चित्तौड़गढ़ जा रहे थे। मार्ग में भगवान पार्श्वनाथ जी का एक जैन मंदिर दिखाई दिया और वे दर्शनार्थ गये। उनकी दृष्टि एक स्तम्भ पर पड़ी, जो एक ओर खुलता भी था। उन्होंने लिखित गुप्त संकेतानुसार कुछ औषधियों के सहारे उसे खोला और उसमें रखे एक अलौकिक ग्रन्थ का प्रथम पृष्ठ पढ़ने लगे। जैसे ही उन्होंने पढ़ने के लिए दूसरा पृष्ठ खोलना चाहा, उन्हें आकाश वाणी सुनाई दी कि “इसे तुम नहीं पढ़ सकते हो" और वह स्तम्भकपाट पुनः बन्द हो गया। यही आगे चलकर चमत्कार सिद्धि में कारण बना।