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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 भागवत पुराण में भी एक ऐसा प्रसंग (५/६/३४) वर्णित है। “इति नानायोगचर्याचरणो भगवान कैवल्यपतिर्ऋषभः" अर्थात् भगवान वृषभदेव ने अपने पुत्रों और प्रजा को षट्कर्मों (असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प) के अलावा चौसठ विद्याओं का उपदेश दिया। संगीत विद्या उन ६४ विद्याओं में समाहित है। इस प्रकार संगीत - स्व-पर सुखदायक होती है। रेडियो थैरेपी की भांति संगीत की सूक्ष्म तरंगे रोग निदान में भी सहायक बनती हैं और मरीज पर सीधा प्रभाव डालती है। संगीत की साधना - आत्माभिमुख बनाकर अन्तस को निर्मल करती है। यह केवल मनोरंजन का ही साधन नहीं है बल्कि ईश्वर उपासना में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। संदर्भ : १. "सौ बोधकथाएं" - प्राचार्य निहालंचद जैन, पृष्ठ-४३ २. संगीतोपनिषद- पद (४/१) ३. अहिंसा वाणी - वर्ष ७, पृष्ठ-१४२- १९५७ (प्रकाशन वर्ष) ४. संगीत सम्मेलन पत्रिका, १९६९, प्रकाशक-श्रमण जैन भजन प्रचारक संघ, देहली, संपादक- डॉ. प्रेमसागर जैन केन्द्रीय विद्यालय क्रं.१ कलपक्कम, जिला- काँचीपुरम तमिलनाडू- ६०३१०२ बोध कथा जीवन का संगीत एक संत से किसी युवक ने पूछा- “जीवन में बचाने लायक महत्त्वपूर्ण वस्तु क्या है? संत का उत्तर था - "स्वयं की आत्मा और उसका संगीत जो उसे बचा लेता है, वह सब कुछ बचा लेता है, और जो उसे खो देता है, वह सब कुछ खो देता है।" एक बूढ़ा संगीतकार, नगर में आयोजित संगीत सभा से वापिस लौट रहा था। उसकी विदाई-बहुत स्वर्ण मुद्राओं से हुई। वह अलमस्त संगीतज्ञ- रास्ते में अकेला बढा जा रहा था। एक वन प्रदेश में डाकओं के गिरोह ने उसे पकड़ लिया और उसका वायलिन व स्वर्ण मुद्राएँ छीन ली। बूढ़े कलाकार ने बहुत सादगी व शान्त भाव से वायलिन लौटाने की प्रार्थना की। डाकू आश्चर्य से देखने लगे कि यह कैसा है जो स्वर्ण मुद्राओं की बात न कर अपना पुराना वाद्य-यंत्र ही मांग रहा है। आखिर डाकुओं ने सोचा यह बोझ लेकर भी हम क्या करेंगे उसे वापिस कर दिया। संगीतकार वायलिन पाकर आनंद से नाच उठा और उसे चूमकर वहीं बैठकर उसे बजाना शुरू कर दिया। संगीत के स्वर-सम्मोहन ने डाकुओं की आंखें नम कर दी और कुछ देर उपरांत डाकू भाव विभोर होकर उसके चरणों में झुक गये। उन्होंने केवल वृद्ध संगीतकार की स्वर्णमुद्राएँ ही वापिस नहीं की अपितु अपना भी बहुत सा धन भेंटकर वन से बाहर सुरक्षित छोड़ आये। - क्या प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी से, कहीं न कहीं, लूटा नहीं जा रहा है? पर ऐसे कितने लोग हैं जो लटी सम्पत्ति की चिंता न करके स्वयं के संगीत को बचा लेते हैं। याद रखें - स्वयं के संगीत से बड़ी और कोई संपत्ति नहीं है। पं. निहाल चंद जैन की- 'अस्सी नैतिक कथाओं' से साभार
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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