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अनेकान्त 66/1 जनवरी-मार्च 2013
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(१७) गुणविशेष कुशल, सर्वमतों की पूजा (सन्मान) करने वाला, सर्व देवालयों का संस्कार
कराने वाला, जिसके रथ और जिसकी सेना को कभी कोई रोक न सका, जिसका चक्र चक्रधुर (सेनापति) द्वारा सुरक्षित रहता है, जिसका चक्र प्रवृत्त है और जो राजर्षि कुल में उत्पन्न हुआ है, ऐसा महाविजयी राजा श्री खारवेल हैं।
इस शिलालेख की प्रसिद्ध घटनाओं का तिथिपत्र
ईसा पूर्व १४६० (लगभग) केतुभद्र
ईसा पूर्व ४६० (लगभग) कलिंग में नन्दशासन
ईसा पूर्व २३० अशोक की मृत्यु
ईसा पूर्व २२० (लगभग) कलिंग के तृतीय राजवंश का स्थापन
ईसा पूर्व १९७ खारवेल का जन्म
ईसा पूर्व १८८ मौर्यवंश का अन्त और पुष्यमित्र का राज्य प्राप्त करना ।
ईसा पूर्व १८२ खारवेल का युवराज होना
ईसा पूर्व १८० (लगभग) सातकर्णि प्रथम का राज्य प्रारम्भ
ईसा पूर्व १७३ खारवेल का राज्याभिषेक
ईसा पूर्व १७२ मूषिक नगर पर आक्रमण
ईसा पूर्व १६९ राष्ट्रिकों और भोजकों की पराजय
ईसा पूर्व १६७ राजसूय यज्ञ
ईसा पूर्व १६५ मगध पर प्रथम आक्रमण
ईसा पूर्व १६१ उत्तरापथ और मगध पर आक्रमण, पाण्डवराज से अदेय (नजराने) की प्राप्ति ईसा पूर्व १६० शिलालेख की तिथि । ४
विजय यात्रा
अपने राजत्वकाल के दूसरे ही वर्ष में खारवेल ने राजा सातकर्ण का कोई भय न मानकर पश्चिम दिशा की ओर सैन्यदल भेजा था। यह सातकर्ण अवश्य ही आन्ध्र सातवाहन वंश के राजा होंगे
हाथी गुफा के शिलालेख से ज्ञात होता है कि खारवेल ने अपने राजत्व के १२वें वर्ष में मगधाधिपति वृहस्पतिमित्र को युद्ध में परास्त किया था। कुछ लोगों के अनुसार पुष्यमित्र सुंग का ही दूसरा नाम वृहस्पति मित्र था ।
खारवेल २४ वर्ष की उम्र में कलिंग के सिंहासन पर बैठा। उसके राज्य के तेरह वर्षों का वर्णन शिलालेख में है । इस अल्प समय में कलिंग के उत्तर और दक्षिण में जितने राज्य थे, सभी को उसने जीत लिया था।' सातकर्णी राजा आन्ध्र के सातवाहन वंश का तृतीय राजा था।