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________________ 50 अनेकान्त 66/1 जनवरी-मार्च 2013 + ( नवें वर्ष में) उसने दिये.. .. पल्लव युक्त । (९) कल्पवृक्ष, सारथी सहित हय-गज-रथ और सबको अग्निवेदिका सहित गृह, आवास और परिवसन सब दान को ग्रहण कराए जाने के लिए उसने ब्राह्मणों की जातिपंक्ति जातीय संस्थाओं को भूमि प्रदान की । अर्हत्..... (१०) उसने महाविजय प्रासाद नामक राजसन्निवास, अड़तीस सहस्र की लागत का बनवाया। दसवें वर्ष में उसने पवित्र विधानों द्वारा युद्ध की तैयारी कर देश जीतने की इच्छा से भारतवर्ष (उत्तर भारत) को प्रस्थान किया। (११) (ग्यारहवें वर्ष में) पूर्व राजाओं के बनवाए हुए मण्डप में, जिसके पहिए और जिसकी लकड़ी मोटी, ऊँची और विशाल थी, जनपद से प्रतिष्ठित तेरहवें वर्ष पूर्व में विद्यमान केतुभद्र की तिक्त (नीम), काष्ठ की अमर मूर्ति को उसने उत्सव से निकाला। बारहवें वर्ष में ...... उसने उत्तरापथ (उत्तरी पंजाब और सीमांत प्रदेश) के राजाओं में त्रास उत्पन्न किया। (१२) और मगध के निवासियों में विपुल भय उत्पन्न करते हुए उसने अपने हाथियों को गंगा पार कराया और मगध के राजा बृहस्पतिमित्र से अपने चरणों की वन्दना कराई। (वह) कलिंग जिन की मूर्ति को जिसे नन्दराज ले गया था घर लौटा लाया और अंग और मगध की अमूल्य वस्तुओं को भी ले आया। (१३) उसने . जठरोल्लिखित (जिनके भीतर लेख खुदे हैं) उत्तम शिखर, सौ कारीगरों ............. को भूमि प्रदान करके बनवाए और यह बड़े आश्चर्य की बात है कि वह पाण्डवराज से हस्तिनावों में भराकर श्रेष्ठहय हस्ति, माणिक और बहुत से मुक्ता और रत्न नजराने में लाया। (१४) फिर तेरहवें वर्ष में व्रत पूरा होने पर (खारवेल ने) उन याप ज्ञापकों को जो पूज्य कुमारी पर्वत पर, जहाँ जिन का चक्र पूर्ण रूप से स्थापित है, समाधियों पर याप और क्षेम की क्रियाओं में प्रवृत्त थे, राजभृतियों को वितरण किया। पूजा और अन्य उपासक कृत्यों के क्रम को श्री जीवदेव की भांति खारवेल ने प्रचलित रखा। (१५) सुविहित श्रमणों के निमित्त शास्त्र- नेत्र के धारकों, ज्ञानियों और तपोबल से पूर्ण ऋषियों के लिए (उसके द्वारा), एक संघायन (एकत्र होने का भवन ) बनाया गया। अर्हत् की समाधि (निषद्या) के निकट पहाड़ की ढाल पर, बहुत योजनों से लाए हुए और सुन्दर खानों से निकाले हुए पत्थरों से, अपनी सिंहप्रस्थी रानी धृष्टी के निमित्त विश्रामागार बनवाया। (१६) और उसने पाटालिकाओं में रत्नजटित स्तम्भों को ७५ लाख पणों (मुद्राओं के व्यय से प्रतिष्ठापित किया। वह (इस समय ) मुरिय काल के १६४ वें वर्ष को पूर्ण करता है। वह क्षेमराज, वर्द्धराज, भिक्षुराज, धर्मराज और कल्याण को देखता रहा है, सुनता रहा है और अनुभव करता रहा है।
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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