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अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013
(J.B. Block), कीलहान जे.एच. फ्लीट, ल्यूडर एफ.डब्ल्यू थामस (E.W. Thomas) खालदास बनर्जी, काशी प्रसाद जायसवाल, वेणीमाधव बरुआ, दिनेशचन्द्र सरकार, तथा नवीन कुमार साहू आदि ने इसके पाठोद्धार का प्रयास किया। शिलालेख का भावानुवाद इस प्रकार है - (१) अरहन्तों को नमस्कार। सर्व सिद्धों को नमस्कार। ऐल महाराज महामेधवाहन
चेतराजवंशवर्द्धन प्रशस्त शुभलक्षणसम्पन्न अखिल देशस्तम्भ, कलिंगाधिपति श्री
खारवेल ने। (२) पन्द्रह वर्ष तक श्री सम्पन्न और कडार (गन्दुमी) रंग वाले शरीर से कुमार क्रीडायें की।
बाद में लेख, रूपगणना, व्यवहार विधि में उत्तम योग्यता प्राप्त कर और समस्त विद्याओं
में प्रवीण होकर उसने नौ वर्ष तक युवराज की भांति शासन किया। जब वह पूरा चौबीस वर्ष का हो चुका, तब उसने जिसका शेष यौवन विजयों से उत्तरोत्तर
वृद्धिंगत हुआ - (३) कलिङ्गराजवंश में एक पुरुष युग के लिए महाराज्याभिषेक पाया। अपने अभिषेक
के पहले ही वर्ष में उसने वातविहत (तूफान से बिगाड़े हुए) गोपुर (फाटक), प्राकार (चहारदीवारी) और भवनों का जीर्णोद्धार कराया, कलिङ्ग नगरी के फब्बारे के कुण्ड, दूषितल्ल (?) और तड़ागों के बांधों को बंधवाया; समस्त उद्यानों का प्रतिसंस्थापन
कराया और पैंतीस लक्ष प्रजा को संतुष्ट किया। (४) दूसरे वर्ष में सातकीर्ण की चिन्ता न करके उसने पश्चिम देश में बहुत से हाथी, घोड़ों,
मनुष्यों और रथों की एक बड़ी सेना भेजी। कृष्णवेण नदी पर सेना पहुंचते ही उसने
उसके द्वारा भूषिक नगर को सन्तापित किया। तीसरे वर्ष में फिर (५) उस गन्धर्ववेद में निपुणमति ने दन्त, नृत्य, गीत, वाद्य, सान्दर्शन, उत्सव और समाज के
द्वारा नगरी का मनोरंजन किया। और चौथे वर्ष में विद्याधर निवासों को जो पहले कभी नष्ट नहीं हुए थे और जो कलिंग के पूर्व राजाओं के निर्माण किये हुए थे........ उनके
मुकुटों को व्यर्थ करके और उनके लोहे के टोपों के दो खण्ड करके और उनके छत्र (६) और भंगारों को (सुवर्णकलशों को) नष्टकर तथा गिराकर और उनके समस्त बहुमूल्य
पदार्थों तथा रत्नों का हरण कर समस्त राष्ट्रिकों और भोजकों से अपने चरणों की
वन्दना कराई। इसके बाद पांचवे वर्ष में उसने तनसलिय मार्ग में नगरी में उस प्रणाली (नहर) का प्रवेश किया, जिसको नन्दराज ने तीन सौ वर्ष पहले खुदवाया था। छठे वर्ष में उसने राजसूय यज्ञ कर सब करों को क्षमाकर दिया।
(७) पौर और जानपद (संस्थाओं) पर अनेक शतसहस्र अनुग्रह वितरण किये। सातवें वर्ष राज्य करते हुए वज्र घराने की धृष्टि नामक गृहिणी ने मातृक पद को पूर्ण करके
सुकुमार आठवें वर्ष में उसने (खारवेल) ने बड़ी दीवार वाले गोरथगिरि पर एक बड़ी सेना के द्वारा (८) आक्रमण कर राजगृह को घेर लिया। पराक्रम के कार्यों के इस समाचार के कारण
नरेन्द्र (नाम).... ............ अपनी घिरी हुई सेना को छुड़ाने के लिए मथुरा चला गया।