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अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013
जीवन परिचय खारवेल पिंगलवर्ण वपुवान् रूपवंत पुरुष थे। जन्म के समय से उनके शरीर पर महामानव के लक्षणों का होना ज्ञात था। विविध क्रीडाओं के माध्यम से शिक्षारम्भ होकर पन्द्रह वर्ष की आयु तक वे लेखन (राजकीय पत्रालाप) रूप (मुद्रा विज्ञान), गणना (गणित ज्ञान) व्यवहार (न्याय), विधि (प्रशासनिक) और सभी विद्याओं में निपुण हो गए थे। हाथी गुम्फा अभिलेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि खारवेल पन्द्रह वर्ष की अवस्था में युवराज पद पर अधिष्ठित हुए थे। परन्तु उन्हें किसने अधिष्ठित किया था, यह इस अभिलेख से ज्ञात नहीं होता है। अनुमानतः उस समय खारवेल के पिता की अकाल मृत्यु के कारण उन्हें नाबालिग अवस्था में युवराज का पद मिला था, और उन्हें दूसरों की प्रशासनिक सहायता से राज्य शासन किया था। उनकी दो रानियाँ थीं, प्रथम रानी ललार्क (हस्तीसिंह के प्रपौत्र) की दुहिता थी, यह वजिरघर रानी के नाम से प्रख्यात थी। वजिरघर को आधुनिक मध्यप्रदेश स्थित बेरागढ़ के रूप में चिन्हित किया गया है। द्वितीय महिषी सिंहपथ रानी के नाम से अभिहित थी। सिंहपथ को आधुनिक श्री काकुलम् जिला के सिंगपुरम के रूप में चिन्हित किया गया है। ई, चौथी सदी में माठर राजवंश के राजत्वकाल में सिंहपुरम ही कलिंग की राजधानी थी। दोनों रानियां भिन्न भिन्न अवसरों पर जनसाधारण के सम्मुख उपस्थित हुआ करती थीं।
अभिषेकोत्सव के एक वर्ष बाद कलिंग का उपकूलवर्ती क्षेत्र वातावध्वंस के कारण कलिंग नगरी के ऊँचे ऊँचे प्रासाद, गोपुर और दुर्गों के प्राचीर ढह गए थे, जिससे कलिंग की पर्याप्त हानि हुई थी। अभिषेक के तुरन्त बाद प्रथम वर्ष में ही उन्होंने राजधानी कलिंग नगरी के भग्न प्रासाद और प्राचीरों का पुनः निर्माण कराया एवं राजधानी को सुदृढ़ तथा सुशोभित किया। दुर्ग, प्राचीर और अट्टालिकाओं के संस्कार साधन के साथ साथ उन्होंने प्राचीन जलाशयों का भी जीर्णोद्धार कराया और उन्हें सुन्दर सोपान श्रेणी से सजाकर उद्यानों को नवीन रूप प्रदान किया। इस विकास कार्य के लिए पैंतीस लाख मुद्राओं का व्यय हुआ था। तीन सौ वर्ष पूर्व कलिंग में महापद्मनन्द ने जो नहर खुदवाई थी, खारवेल ने अपने शासन के पांचवे वर्ष में उसकी अभिवृद्धि की तथा उसे कलिंग नगरी तक ले आए। वह जल प्रवाह कलिंग में कृषि, स्नान, संतरण तथा पानीय के लिए अत्यन्त सहायक सिद्ध हुआ। राजत्व के छठे वर्ष में उन्होंने राजैश्वर्य का प्रदर्शन करते हुए पौर और जनपदों को कर रहित घोषित किया। उस समय वैदेशिक धनसम्पदाओं से राजकोश परिपूर्ण था। अतः उन्नयन कार्यों पर उसका कोई प्रभाव न पडा। राजत्व के नौवें वर्ष खारवेल ने जैनतीर्थ मथुरा को यवनों की अधीनता से मुक्त किया। तत्पश्चात् अड़तीस लाख मुद्राओं के व्यय से विजयस्मारिका के रूप में एक महाविजय प्रासाद का निर्माण किया। उसका क्रीडा संगीत और नाट्य के प्रति विशेष आकर्षण था।
हाथी गुम्फा शिलालेख उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर के समीप उदयगिरि पर हाथी गुम्फा नामक प्राकृतिक गुम्फा की आभ्यन्तरीण छत पर खोदी हुई महाराज खारवेल की एक सुदीर्घ प्रस्तर लिपि है। यही सुप्रसिद्ध 'हाथी गुम्फा' शिलालेख है। सर्वप्रथम इसकी खोज १८२० में स्टर्लिग सा. ने की थी तथा इसे "An account of Geographical statisfdeical and historical of Orissa or Cuttack" ग्रंथ में सन्दर्भित किया था। बाद में मार्खम किटो (M. Kittoe), प्रिसेप, अलेक्जेण्डर कनिंघम, राजेन्द्रलाल मित्र, लॉक (locke) पण्डित भगवानलाल इन्द्र, ब्यूलर (Buhler) जे.बी ब्लॉक