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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 "श्रेयो मार्गस्य संसिद्धिः प्रसादात्परमेष्ठिनः। १२ अर्थात-परमेष्ठी- परमात्मा के प्रसाद से श्रेयोमार्ग- कल्याणकारी मार्ग अथवा मोक्षमार्ग की सिद्धि होती है। यहाँ पर प्रसाद का अर्थ है- प्रसन्नचित्त परमात्मा की उपासना-भक्ति करना। इससे जो कल्याण मार्ग की सिद्धि होती है वही यथार्थ में परमेष्ठी का प्रसाद है। सम्यक्दर्शन और सम्यग्ज्ञान सहित सम्यक् आचरण ही मोक्षमार्ग-श्रेयमार्ग कहलाता है, १३ इस मोक्ष मार्ग की प्राप्ति निर्मल भक्ति एवं वंदना से सम्भव है। जब हम प्रभु की भक्ति-वंदना स्तुति स्वरूप मंगल आचरण का व्यवहार करते हैं तब क्या हमें श्रेयमार्ग की प्राप्ति नहीं होगी? अर्थात् होगी। अर्थात् वीतराग जिनेन्द्र देव के स्मरण, कीर्तन, गुणानुवाद, स्तुति, पूजन, प्रणाम, नमोऽस्तु मंगलरूप आचरण करने से अनंतानंत संसार की जन्म-मरण रूप परम्परा का नाश कर मुक्ति धाम की प्राप्ति होती है। संदर्भ - १. जिन भारती संग्रह, पृष्ठ - ६० २. जिनेन्द्रवचनामृतसार - (डॉ. गुलाबचन्द जैन) पृष्ठ-७ ३. जिनेन्द्रवचनामृतसार - (डॉ. गुलाबचन्द जैन) पृष्ठ-७ ४. धवला पुस्तक १. पृष्ठ-३१ ५. धवला पुस्तक १. पृष्ठ-३३-३४ षट्खण्डागम, खण्डे १, पुस्तक १, (टीकाकत्री- आ. ज्ञानमति माता) पृष्ठ-३० षट्खण्डागम, खण्ड १, पुस्तक १, (टीकाकत्री- आ. ज्ञानमति माता) पृष्ठ-३१ ८. षट्खण्डागम, खण्ड १, पुस्तक १, (टीकाकत्री- आ. ज्ञानमति माता) पृष्ठ-४० ९. धवला १/१, १.१/३६/९, जैनेन्द्र सिद्धांत कोश भाग -३, पृष्ठ-२४१ १०. (i) पंचास्तिकाय संग्रह १, आचार्य जिनसेन कृत तात्पर्यवृत्ति। ११. (ii) न्यायदीपिका- डॉ. दरबारीलाल कोठिया, पृष्ठ-१३५ (हिन्दी अनुवाद) १२. (i) आप्तपरीक्षा - (आचार्य विद्यानंद जी) १३. (ii) आप्तपरीक्षा - सं. न्यायाचार्य पं. दरबारीलाल कोठिया, प्रकाशक-वीर सेवा मंदिर, दिल्ली पद्य २, पृष्ठ-२ १३. 'सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः" - तत्त्वार्थसूत्र अध्याय १, सूत्र १ - कोहॅड़ार, इलाहाबाद-२१२३०१ (उ.प्र.)
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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