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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 ३. ईश्वर की सत्ता में विश्वास करना मंगलाचरण का द्योतक है। मंगलाचरण करने से नास्तिक मत का खण्डन और आस्तिक भाव का समर्थन होता है। मंगलाचरण करने वाले भक्तपरमात्मा, पुनर्जन्म, आत्मा, स्वर्ग, मोक्ष, धर्म आदि को विश्वासपूर्वक जानता है तथा सद् आचरण करता है, वह भक्त आस्तिक कहलाता है। आस्तिक अथवा परीक्षा प्रधानी भक्त सर्वज्ञ शास्त्र, व्रत और जीवतत्त्वों में अस्तित्व बुद्धि रखने को आस्तिक्य कहते हैं। आस्तिक्य प्रयोजन के बिना किसी भी मानव का परमात्मा में भक्ति का भाव नहीं हो सकता। ४. नमस्कार पूर्वक मंगलाचरण करने से मन पवित्र-निर्मल हो जाता है। जब मनुष्य सर्वज्ञ परमात्मा के श्रेष्ठ गुणों का कीर्तन या चिंतन करता है तब वह उसमें अहित विचार दूर होकर या पापवासना का नाश होकर मन में अच्छे विचार तथा उत्साह जागृत होता है जो मन को पवित्र करता है। गुणी महापुरुष के गणों के चिन्तन या कीर्तन के बिना हदय की शुद्धि नहीं हो सकती। आध्यात्मिक एवं लौकिक परोपकारी कार्य को पूर्ण करने के लिए मानसिक शुद्धि आवश्यक है। ५. भगवान की भक्ति करते समय उनको नमस्कार करने में आत्मकल्याण की भावना निहित है। आत्म-कल्याण के साथ-२ विश्व कल्याण की भावना भी इस नमस्कार सहित भक्ति में समाहित है। जो व्यक्ति आत्महित की साधना करता है उस व्यक्ति से ही विश्व का कल्याण हो सकता है। इस प्रयोजन की सिद्धि परमेष्ठी की भक्ति के बिना नहीं हो सकता। कारण कि जिस आत्मा ने मक्ति मार्ग की साधना कर मुक्ति को प्राप्त किया है, वह आत्मा ही संसार से मुक्ति का मार्ग दिखा सकता है। परमात्मा की अर्चना, भक्ति एवं साधना करते समय उनको प्रणाम किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से परमात्मा के अन्दर विराजमान सद्गुणों की प्राप्ति होती है। परमात्मा अनन्तानन्त गुणों के स्वामी होते हैं। इसलिए उनके गण हमें भी प्राप्त हो, इस भावना से हम उनको नमस्कार करते हैं। जो व्यक्ति जिस गुणी पुरुष के समान गुणों को प्राप्त करना चाहता है, वह उसी गुणी पुरुष की संगति करता है, उसको आदर्श मानता है, उसको नमस्कार करता है, उसकी प्रशंसा करता है। इसलिए परमात्मा के समान श्रेष्ठ गणों को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति उनकी पूजा, वंदना करता है, उनको प्रणाम करके शुभ कार्य का प्रारंभ करते हैं। व्यक्ति को गण ग्राही बनकर गुणी की पूजन वंदन अभिवंदन करना चाहिए, न कि लोक समान, धन लालसा, विषय भोग आदि के लोभ से। आचार्य पूज्यपाद स्वामी सर्वार्थसिद्धि के मंगलाचरण में लिखते हैं - "मोक्ष मार्गस्य नेतारं, भेत्तारं कर्म भू भृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वन्दे तद गुण लब्धये।"११ अर्थ-जो मोक्ष मार्ग के नेता, कर्मरूपी पर्वतों को भेदने वाले एवं विश्व के तत्त्वों को जानने वाले, ऐसे विशेषणों से सुशोभित हितोपदेशी, वीतरागी और सर्वज्ञ भगवान् को उनके श्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति के लिए मैं उनकी वंदना करता हूँ। ७, पंचपरमेष्ठी या परमात्मा की साधना करने से जीवन का परमलक्ष्य मोक्ष-प्राप्ति होती है। परमात्मा को ध्यान में रखकर किया गया उपासना ही उपासक को मुक्ति मार्ग की प्राप्ति कराता है। आचार्य विद्यानंद स्वामी जी आप्त परीक्षा में लिखते हैं कि -
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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