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अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013
१. मंगल का अर्थ - मंगल दो शब्दों के से बना है - मं+गल। 'मं' का अर्थ है - 'पाप'
एवं 'गल' का अर्थ है - गलाना। या "मं-पापं गालयति इति मंगलम्।" अर्थात् जो पापों को नष्ट करें गला देवें, वह मंगल होता है। जो संसार के समस्त दाखों को नष्ट करने वाला तथा लौकिक सुख व आध्यात्मिक सुखों को देने के निमित्त कारण हैं वे मंगल
कहलाते हैं। २. मगल-कर्ता - चौदह विद्या-स्थानों के पारगामी आचार्य परमेष्ठी मंगलकर्ता है। ३. मंगलकरणीय - भव्य जन मंगल करने योग्य है। ४. मंगल का उपाय - रत्नत्रय की साधक सामग्री मंगल का उपाय है। ५. मंगल के भेद - 'जिनेन्द्र देव का नमस्कार हो' इत्यादि रूप से मंगल अनेक प्रकार
का है। जो श्लोकादि की रचना के बिना ही जिनेन्द्र गुण-स्तवन किया जाता है वह अनिबद्ध मंगल है तथा जो श्लोकादि की रचना रूप से ग्रंथ के आदि में ग्रंथकार के द्वारा इष्टदेवता को नमस्कार निबद्धकर किया जाता है वह निबद्ध मंगल होता है। इस
प्रकार निबद्ध और अनिबद्ध के भेद से मंगल के दो रूप हैं। ६. मंगल का फल - अभ्युदय और मोक्ष सुख मंगल का फल है। अर्थात जितने प्रमाण में
यह जीव मंगल के साधन मिलाता है, उतने ही प्रमाण में उससे जो यथायोग्य अभ्युदय
और निःश्रेयस सुख मिलता है वही उसके मंगलाचरण एवं मंगल का फल है। मंगल एवं मंगलाचरण करने का प्रयोजन - किसी भी शुभ कार्य के आरंभ में मंगल आचरण करना मंगलाचरण कहलाता है। मंगलमय आचरण-व्यवहार क्यों करना चाहिए ? मंगलाचरण करने का क्या उपदेश है? मंगलाचरण करने का क्या प्रतिफल है? इन सभी प्रश्न
का उत्तर यह है कि - हमारे जीवन में आध्यात्मिक साधना का जो परम लक्ष्य है वही लक्ष्य/ उद्देश्य/ प्रतिफल इस स्तुति - वंदना स्वरूप मंगलाचरण का भी है।
स्तुति, वंदना स्वरूप मंगलाचरण में देव, शास्त्र, गुरु या पंचपरमेष्ठी या नव देवता या तीर्थकर का गुणानुवाद किया जाता है। अशुभ, विकार भाव या पापों को नष्ट करने के ध्येय से पुण्यप्राप्ति या आत्मशुद्धि के लिए भी मंगलाचरण किया जाता है। पुण्यप्राप्ति, आत्मशुद्धि के अतिरिक्त मंगलाचरण के प्रयोजन १० इस प्रकार है - १. परमपिता परमेश्वर मंगल स्वरूप है। उन परमात्मा को मंगलाचरण में नमोस्तु करने से
हमारा उद्देश्य निर्विघ्न रूप से सम्पन्न होता है। अर्थात् मंगल स्वरूप मंगल प्रदाता परमात्मा का गुणानुवाद करने से ग्रंथ जैसे शभकार्य की रचना निर्विघ्न रूप से पूर्ण
होती है। २. जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार करते हुए मंगलाचरण करना शिष्टाचार का परिपालन भी
है। लोक में शिष्ट एवं विशिष्ट व्यक्तियों की यह परम्परा है कि प्रतिदिन परमात्मा का दर्शन, पूजन-भक्ति करते हैं तथा प्रत्येक शुभ कार्य के शुभारम्भ में पूज्य इष्टदेव को स्मरण कर उनको नमस्कार कर मंगलाचरण करते हैं और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए शिष्टाचार का पालन करते हैं। क्योंकि जिन परमात्मा की कृपा से श्रद्धा, ज्ञान
और चारित्र रूप रत्नत्रय गुण की प्राप्ति होती है। मंगल विधि द्वारा उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना शिष्टजनों का कार्य है।