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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 भाव मंगल - केवल ज्ञान प्राप्त अथवा मुक्ति दशा को प्राप्त वर्तमान पर्याय के सहित अरहन्त, एवं सिद्ध की आत्मा को भाव निक्षेप मंगल कहते हैं। अर्थात् वर्तमान में काल में मंगल पर्यायों से परिणत जो शद्ध जीव है (पंच परमेष्ठियों की आत्मा) हैं, वे भाव मंगल है। सातिशय पुण्य के कारण भूत परिणाम या मोक्ष के साक्षात् हेतभत भाव भी भावमंगल है। जैसे- पूजा-भक्ति, ध्यान के परिणाम। ५. नय की अपेक्षा मंगल का कथन - नय के मूलरूप से दो भेद हैं - १. द्रव्यार्थिकनय, २. पर्यायार्थिक नय। तीर्थकरों के वचन सामान्य प्रस्तार का मूल व्याख्यान करने वाला द्रव्यार्थिक नय है और उन्हीं वचनों के विशेष प्रस्तार का मल व्याख्याता पर्यायार्थिक नय है। अथवा द्रव्य की मुख्यता से पंचपरमेष्ठी की आत्मा और पर्याय की दृष्टि से उनकी वर्तमान पर्याय मंगल है। शेष सभी नय इन दोनों के भेद हैं। ६. अनुयोग की अपेक्षा मंगल का कथन - इस अनयोग में मंगल क्या है? मंगल किसका ? किसके द्वारा मंगल किया जाता है? मंगल कहाँ होता है? कितने समय तक मंगल रहता है? मंगल कितने प्रकार का है? - इन सभी प्रश्नों का उत्तर - समाधान किया गया है। मंगल क्या है? - जीव द्रव्य मंगल है। मंगल किसका है? - जीव द्रव्य का मंगल है। किसके द्वारा मंगल किया जाता है? - औदयिक भावों के द्वारा मंगल किया जाता है अर्थात् पूजा-भक्ति अणुव्रत-महाव्रत आदि प्रशस्त रागरूप औदयिक भाव-परिणाम भी मंगल में कारण होते हैं। मंगल कहाँ होता है जीव में मंगल होता है। कितने समय तक मंगल रहता है? - नाना जीवों की अपेक्षा हमेशा मंगल रहता है और एक जीव की अपेक्षा अनादि अनन्त, और सादि-सान्त तक मंगल रहता है। मंगल कितने प्रकार का है?- मंगल सामान्य की अपेक्षा एक प्रकार का है। मुख्य, गौण की अपेक्षा मंगल दो प्रकार का है। द्रव्य मंगल और भाव मंगल दो प्रकार का है। लौकिक और पारमार्थिक की अपेक्षा मंगल के दो प्रकार हैं। निश्चय व व्यवहार की अपेक्षा मंगल के दो प्रकार है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के भेद से तीन प्रकार का मंगल है। अरिहंत, सिद्ध, साधु और अर्हन्त के भेद से मंगल चार प्रकार का है। सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और तीन गुप्ति के भेद से पांच प्रकार का है। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा मंगल के छह भेद हैं। पंचपरमेष्ठी की अपेक्षा मंगल पांच प्रकार का कहा जा सकता है। नवदेवता की अपेक्षा मंगल नव प्रकार का सिद्ध होता है। अथवा जिनेन्द्र देव को नमस्कार करने की जितनी पद्धतियाँ हैं, मंगल के उतने भेद हो सकते हैं। (ख) मंगल के छह अधिकारों का कथन - मंगल के विषय में छह अधिकारों द्वारा दंडक का कथन करना चाहिए। दण्डक के छह नाम इस प्रकार हैं - मंगल का अर्थ मंगलकर्ता, मंगलकरणीय मंगल का उपाय, मंगल के भेद, मंगल का फल।
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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