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अनेकान्त 66/1 जनवरी-मार्च 2013
३. 'मंगल' शब्द की निरूक्ति पूर्वक कथन आचार्य वीरसेन स्वामी जी ने मंगल शब्द की निरुक्ति करते हुए लिखा है
मंग- शब्दोऽयमुदिष्टः पुण्यार्थस्याभिधायकः । तल्ला-तीत्युच्यते - मंगल मंगलार्थिभिः॥
पापं मलमिति प्रोक्तमुपचारः समाश्रितः । तद्धि गालयतीत्युक्तं मंगलं पण्डितै जनैः ॥
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अर्थात् 'मंग' शब्द पुण्य रूप अर्थ का प्रतिपादक है, जो पुण्य को लाता है, उसे मंगल के इच्छुक सत्पुरुष मंगल कहते हैं। अथवा उपचार से पाप को मल भी कहा जाता है, इसलिए जो उस पाप का गालन करे अर्थात् नाश करे उसको भी पण्डितजनों ने मंगल कहा है।
४. निक्षेप की अपेक्षा मंगल का कथन नामादि के द्वारा वस्तु में भेद करने के उपाय को न्यास या निक्षेप कहा जाता है। प्रमाण और नय के अनुसार प्रचलित हुए लोकव्यवहार को निक्षेप कहते हैं। अनिर्णित वस्तु को निर्णित करने वाला निक्षेप कहलाता है। निक्षेप के छह भेद हैं नाम, स्थापना, द्रव्य क्षेत्र, काल और भाव । ६ इन छह निक्षेप की अपेक्षा मंगल का कथन इस प्रकार है
नाम मंगल - जाति द्रव्य गुण और क्रिया के बिना किसी वस्तु का या मनुष्य का 'मंगल' इस नाम के निश्चित करने को नाम मंगल कहते हैं, जैसे किसी बालक का नाम मंगलराम या मंगलदास रख दिया जाय तो वह नाम मंगल है।
स्थापना मंगल - लेखनी आदि से लिखित चित्र में, निर्मित मूर्ति में अथवा अन्य किसी वस्तु में बुद्धि से उसमें मंगल रूप जीव के, महात्मा या परमात्मा की "यही वही है" इस प्रकार की स्थापना करना स्थापना मंगल है, जैसे भगवान् महावीर की मूर्ति में भगवान महावीर की स्थापना कर नमस्कार करना स्थापना मंगल है।
द्रव्य मंगल - भविष्य में पूर्ण ज्ञान के अतिशय को या मुक्तिदशा को प्राप्त होने के लिए सन्मुख महात्मा को अथवा भूतकाल में मुक्ति प्राप्त जीव को या पूर्ण ज्ञान प्राप्त पुरुष महात्मा को वर्तमान में नमस्कार करना द्रव्यमंगल कहा जाता है। इस भेद में भूतकाल और भविष्यकाल की मुख्यता लेकर उस पूज्य आत्मा को नमस्कार किया जाता है।
क्षेत्र मंगल - गुण परिणत आसन क्षेत्र अर्थात्, जहाँ पर योगासन, वीरासन आदि अनेक आसनों से तदनुकूल अनेक प्रकार के योगाभ्यास जितेन्द्रियता आदि गुण प्राप्त किये गये हों, ऐसा क्षेत्र परिनिष्क्रमण क्षेत्र अर्थात् जहां तीर्थंकर आदि महापुरुषों ने दीक्षा ली है ऐसा क्षेत्र, केवलज्ञानोत्पत्ति क्षेत्र और निर्वाण क्षेत्र को क्षेत्र मंगल कहते हैं। जैसे- सम्मेदशिखर, गिरनार पर्वत, चम्पापुर पावापुर आदि ।
काल मंगल - जिस काल में जीव केवलज्ञानादि अवस्थाओं को प्राप्त होता है, उसे पापरूपी मल गलाने वाला होने के कारण काल मंगल कहते हैं। दीक्षा, केवलज्ञान, निर्वाण प्राप्ति दिवस आदि काल मंगल कहे जाते हैं। जैसे- पर्युषण पर्व, श्रुतपंचमी, मोक्षसप्तमी, महावीर जयंती आदि ।