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मंगल एवं मंगलाचरण का विश्लेषणात्मक अध्ययन
-डॉ.बसन्तलालजैन
'मंगल' शब्द कल्याणकारी एवं शुभ सूचक शब्द है। किसी भी शुभकार्य के प्रारंभ में मंगलरूप आचरण करना मंगलाचरण है। ग्रंथ जन हितार्थ लिखा एवं पढा जाता है। अतः उसको प्रारम्भ करते समय मंगलाचरण का निर्वाह किया जाता है। मंगलाचरण में अपने इष्टदेव को याद कर उनको प्रणाम किया जाता है।
मंगलाचरण में प्रायः पंचपरमेष्ठी या रत्नत्रय प्रदाता देव, शास्त्र और गुरू के गुणों की स्तुति की जाती है। इससे कषायों की मन्दता होती है और शुभ राग एवं पुण्य प्राप्त होता है। मंगलाचरण करने से परिणामों में निर्मलता आती है। मंगल आचरण करने से सारे पाप दूर होते हैं। इसलिए आचार्यों ने कहा है कि - अपराजित - मंत्रोऽयं, सर्व-विघ्न-विनाशनः।
मंगलेषु च सर्वेषु, प्रथमं मंगलं मतः॥ एसो पंच-णमोयारो, सव्व-पावप्पणा-सणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम होई मंगलं॥ विघ्नौघाः प्रलयं यान्ति, शाकिनी-भूत-पन्नगाः।
विषं निर्विषतां याति, स्तूयमाने जिनेश्वरे॥१ अर्थात् यह पंच नमस्कार मंत्र अजेय है, सब विघ्नों का विनाश करने वाला है यह पंच नमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सर्व मंगलों में प्रथम मंगल है। मंगलाचरण में अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु - इन पांच परमेष्ठी, भगवान का स्तवन करने से विघ्नसमूह नष्ट हो जाते हैं एव शाकिनी, डाकनि, भूत, पिशाच, सर्प, सिंह अग्नि आदि का भय नहीं रहता और हलाहल विष भी अपना असर त्याग देते हैं।
धवला ग्रन्थ के अनुसार मंगल का विवेचन - (क) धवला टीका में आचार्य वीरसेन स्वामी जी ने मंगल का विवेचन धातु, निक्षेप, नय,
एकार्थ, निरुक्ति और अनुयोग' के द्वारा किया है। १. 'धातु' या व्याकरण की अपेक्षा मंगल का कथन - 'धातु' से ही शब्दों की निष्पत्ति
मानी गयी है अथवा शब्दों के मूल कारणभूत धातु है। 'मगि' धातु से 'अलच्' प्रत्यय
करने पर 'मंगल' शब्द की निष्पत्ति हुई है। जिसका अर्थ है - सुख को लाने वाला।' २. 'मंगल' के एकार्थवाची शब्द - धवला ग्रंथ में आचार्य ने इस प्रकार बताये हैं - मंगल,
पुण्य, पूत, पवित्र, शिव, शुभ, कल्याण, भद्र, सौख्य इत्यादि