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अनेकान्त 66/1 जनवरी-मार्च 2013
प्रश्न होता है कि इन पाँच ज्ञानों में एक साथ किसी भी जीव को कितने ज्ञान हो सकते हैं ? आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र (१/३०) में कहा है- "एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्यः” अर्थात् एक जीव में एक साथ एक से लेकर चार ज्ञान तक ही हो सकते हैं, इससे अधिक नहीं । जीव का यदि एक ज्ञान होगा तो मात्र "केवलज्ञान" । क्योंकि यह निरावरण और क्षायिक है। अर्थात् समस्त ज्ञानावरण कर्म के क्षय से यह होता है। इसीलिए असहाय (अकेला) होता है। इसके साथ अन्य क्षायोपशमिक ज्ञान नहीं रह सकते।
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ज्ञान के सम्बन्ध में जैनधर्म की यह मान्यता भी विशेष महत्त्व रखती है कि यहाँ ज्ञान के अभाव को तो अज्ञान कहा ही है, मिथ्याज्ञान को भी अज्ञान माना है। यहाँ इन दोनों में यह अन्तर विशेष दृष्टव्य है कि जीव एकबार सम्यग्दर्शन रहित तो हो सकता है, किन्तु ज्ञान रहित नहीं हो सकता। किसी न किसी प्रकार का ज्ञान जीव में अवश्य रहता है। वही ज्ञान सम्यक्त्व का आभिर्भाव होते ही सम्यग्ज्ञान कहलाने लगता है।
इस प्रकार जैनधर्म में द्रव्यानुयोग के अनेक विशिष्ट ग्रंथों की अपेक्षा समणसुत्तं में यद्यपि ज्ञान का स्वरूप - विवेचन सामान्य होते हुये भी सम्पूर्ण है। ज्ञानविषयक इन गाथाओं की यदि विस्तृत व्याख्या की जाए तो काफी सूक्ष्म विवेचना सामने आती है। इसलिए रत्नत्रय में सम्यग्ज्ञान का अपना विशेष महत्व है। क्योंकि ज्ञानरूपी प्रकाश ही ऐसा उत्कृष्ट प्रकाश है, जो समस्त जगत् को प्रकाशित करता है। इसीलिए इसे द्रव्य स्वभाव का प्रकाशक कहा गया है। सम्यग्ज्ञान से तत्त्वज्ञान, चित्त का निरोध तथा आत्मविशुद्धि प्राप्त होती है। ऐसे ही ज्ञान से जीव राग से विमुख तथा श्रेय में अनुरक्त होकर मैत्रीभाव से प्रभावित होता है। भगवती आराधना गाथा (७७१) में कहा है कि ज्ञानरूपी प्रकाश के बिना मोक्ष का उपायभूत चारित्र, तप, संयम आदि की प्राप्ति की इच्छा करना व्यर्थ है।
अब ज्ञान की महिमा को बतलाने वाली समणसुत्तं की निम्नलिखित गाथा प्रस्तुत करते हुये इस आलेख को पूर्ण मानता हूँ -
सूई जहा ससुत्ता, न नस्सई कयवरम्मि पडिआ वि। जीवो वि तह ससुत्तो, न नस्सइ गओ वि संसारे ॥ २४८ ॥
अर्थात् धागा पिरोई हुई सुई कचरे में गिर जाने पर भी खोती नहीं है, वैसे ही ससूत्र अर्थात् शास्त्रज्ञान युक्त जीव संसार में पड़कर भी नष्ट नहीं होता। अतः मैं अपने प्रति यह कामना करता हूँ कि ऐसे ही सम्यग्ज्ञान को मेरी आत्मा प्राप्त करे, ताकि यह मनुष्य जन्म सफल हो जाए।
निदेशक, बी.एल.इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, 20वाँ किमी. जी. टी. करनाल रोड, पो. अलीपुर, दिल्ली-110036