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________________ 10 अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 इस अर्थहीन वातावरण में यदिजीवनोपयागी और भवभ्रमणका नाश करने वाली आध्यात्मिक जिनवाणी के पीयूष पान कराने वाला यदि मिल जाये तो अपना सातिशय पुण्य का उदय समझना चाहिए। आज निष्काम योगी आध्यात्मिक संत आचार्य श्री विशुद्धसागर जीने आचार्य भगवन्तोंकी मूलकृतियों को अपनी सम्यक्त्वमयी देशना का आधार बनाया है। पूज्यपाद स्वामी द्वारा विरचित इष्टोपदेश पर एक भाष्यवे पूर्ण कर चुके थेकिन्तुपुनःइसी आध्यात्मिक ग्रन्थ पर अपनी अमृतमयी सर्वोदयी देशना की धारा प्रवाहित कर भव्य जीवों को आध्यात्मिक दृष्टि के साथ साधना का वही चिरन्तन मार्ग पुनः स्थापित करने का प्रयास किया है जिसकी परम्परा वर्तमान के नमोस्तुशासक भगवान महावीर ने डाली थी। सर्वोदयी देशना में जहाँ एक तरफ अन्तरंग पवित्रता पर बल दिया गया है वहीं दूसरी तरफ बाह्य आचरण की शुचिता पर भी जोर डाला गया है। देशनाकार समझाते हैं - ___ “जहाँ जहाँ अन्तरंग संयम होगा, वहाँ वहाँ नियम से बहिरंग संयम होगा ही होगा। पर जहाँ जहाँ बहिरंग संयम है, वहाँ अन्तरंङ्ग संयम हो भी सकता है, नहीं भी, लेकिन अन्तरंग संयम से वहिरंग संयम की व्याप्ति है। दूध तपा, बर्तन तपा। ज्ञानी! तपाना किसे चाहते थे? दध तपाना था, कि बर्तन तपाना था? बर्तन तपाने के लिए जो अग्निजलाये उसको कोई ज्ञानी कह नहीं सकता। पर क्या करूँदूध तपाना है, तो बर्तन तो तपाना ही पड़ता है। बिना बर्तन तपे, दूध तपता नहीं।अन्तरंङ्ग तपकी प्राप्ति के लिए बिना बहिरंङ्ग तपे, अंतरंङ्ग तपता नहीं है। जो बहिरंङ्ग तप तपे बिनाप अंतरंङ्ग तप कर रहे हैं, अहो ज्ञानियों! वे गाय के सींग से दूध की धारा निकाल रहे हैं।” (पृष्ठ १५) वास्तव में आज इसी संतुलन की आवश्यकता है।हम देख रहे हैं कि कई साधक ऐसे हैं जो बर्तन को ही तपाने में लगे हैं, दूध उसमें रखते ही नहीं है और कई साधक बर्तन को तपाये बिना ही चाहते हैं कि बस दुध खौल जाये और करना क्या है? दोनों ही दृष्टियाँ अधूरी हैं। सच्चे मोक्षमार्ग के लिए इस संतुलन को तो कायम रखना ही होगा। अन्यथा सच मानिये, सबकुछ चलेगा मात्र धर्म को छोड़कर। प्रश्न होता है आखिर यह विपर्यास चल क्यों रहा है?
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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