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________________ अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 इसका एक ही उत्तर है आध्यात्मिक दृष्टि का अभाव।यह चिन्ता सर्वोदयी देशना में अभिव्यक्त हुई है - ___ “आज यथार्थ मानिये कि गृहस्थ से लेकर योगी तक को अध्यात्म की जरूरत है।अध्यात्म के चिन्तन के अभाव में सब संसार का विपर्यास चल रहा है।” (१/पृ.७) अध्यात्म की आवश्यकता गृहस्थ को भी है, योगी को तो वह अनिवार्य है।हम देह का बहाना बनाकर अध्यात्म की उपेक्षा नहीं कर सकते।शरीर को चलाना मजबूरी हो सकता है कि धर्म के लिए आत्मा के परिणामों की सम्हाल भी जरूरी है। देशनाकार के शब्दों में - ___ "शरीर को चलाने के लिए गृहस्थों को कुछ काम करना पड़ता है। कर लेना आप, लेकिन धर्म को चलाने के लिए परिणामों को संभालना पड़ता है, इतना ध्यान रखना।" (पृष्ठ १८) अध्यात्म के क्षेत्र में साधकजो सबसे बड़ी भूल करता है वो है साधन-साध्य' का परस्पर विलय। वह साधन को ही साध्य समझने की भूल कर बैठता है इसलिए वहीं अटका रह जाता है, लक्ष्य को, अपने साध्य को प्राप्त नहीं कर पाता। यह उलझन देशनाकार ने सुलझाने की कोशिश की है___ “पिच्छी-कमण्डलु साधन है,साध्य नहीं है।-येपिच्छी कमण्डलु मोक्षमार्ग नहीं है। पिच्छी कमण्डलु के बिना भी मोक्षमार्ग नहीं है। ..पिच्छी कमण्डलु मोक्षमार्ग हो जाता है तो ज्ञानियों! हमारे सम्मेदशिखरजी तीर्थक्षेत्र पर पानी के वर्तनों को ढोने वाले सभी सिद्ध बन गये होते और जितने मयूर हैं सभी मोक्ष चले गये होते। इन पंखों को लेने से मोक्ष नहीं होता, कमण्डलु होने से मोक्ष नहीं होता। पर, ज्ञानियों ध्यान रखना, रत्नत्रय की भावना से मोक्ष होता है। ये साधन है,साध्य नहीं है।साधनकोसाधन स्वीकारिये,साध्यकोसाध्यस्वीकारिये। साधन के अभाव में साध्य की सिद्धि नहीं होती है। लेकिन साधन को लेकर जो बैठ जायेगा तो वह साध्य को प्राप्त नही कर पायेगा।" (पृष्ठ १४-१५) वास्तविकता यह है कि हम साध्य को समझ ही नहीं पाते हैं तब उसकी प्राप्ति कैसे करेंगे? जब साधन में ही फंसे हैं तो हम पर्याय को ही देखेंगे-द्रव्य दृष्टि से ओझल हो जायेगा।देशनाकार कहते हैं कि-"जो पर्याय दृष्टि में जीता
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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