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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013
अक्षत-पुष्पादिक्षेपण करते हुए प्रमुख द्वार पर ऊँ, स्वस्तिक,शुभ-लाभ लिखकर गृहप्रवेश करना चाहिए तथा श्री जिन मंदिर से लाया हुआ मंगलकलश ईशान कोण में स्थापित करना चाहिए तथा सभी परिवारजनों को भोज करना चाहिए। शांति विधान कहाँ किया जाये; इस विषय में दो मत है - ___ 'प्रतिष्ठा पराग' (पृ.२०४) में गृहप्रवेश के सम्बन्ध में लिखा है कि-गृहप्रवेश अनुष्ठान के एक दिन पूर्व मंदिर जी में ही शांति विधान करें। जिस नवीन ताम्र कलश को घर में स्थापित करना है उसे पूर्ण सामग्री के साथ विधान मण्डल पर विधिपूर्वक स्थापित करें, जिसे गृहप्रवेश के दिन मंदिर से लेकर आयेंगे।
वर्तमान में प्रायः नवनिर्मित घर में ही कहीं-कहीं जिन मंदिर से मूर्तिलाकर, कहीं विनायक यंत्र लाकर और कहीं केवल जिनवाणी की स्थापना कर श्री शांतिनाथ महामण्डल विधान कर आयोजन किया जाता है। श्री शांतिनाथ महामण्डल विधान के पूर्व अभिषेक, पूजन, देव, शास्त्र, गुरु, नवदेवता एवं विनायक यंत्र पूजन के उपरांत सिद्धभक्ति कायोत्सर्गपूर्वक शांतिदायक मंत्र
का जाप करना चाहिए तथा गंधोदक सभी दीवालों पर प्रक्षेपित करना चाहिए। मंत्र जाप से वास्तु का वातावरण भावनात्मक रूप से शुद्ध होता है। इसके पश्चात् णमोकार मंत्रपाठ,श्रीशांतिनाथ मण्डल विधान अथवा भक्तामर मण्डल विधान सर्वशांति की भावना से करना चाहिए। ___ विधान के उपरांत जपे हुए मंत्र की दशांश आहुतिपूर्वक शांति हवन करना चाहिए। हवन करने से वास्तु में उष्मा और सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है जिस तरह बिना अग्नि में जलाए धातु आदि की खोट नहीं मिटती वैसे ही बिना हवन के वास्तुदोषों का शमन नहीं होता।हवन के पश्चात् दानादि एवं जिनवाणी भेंट करना चाहिए। गृहस्थाचार्य का सम्मान करना चाहिए।
नवीन गृह के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाना चाहिए। - गृहप्रवेश से पूर्व मुख्य द्वार पर पहुँचकर दिग्वंधन करें तथा द्वार के ऊपर टःट (स्वास्तिक, ओ३म्. स्वास्तिक) की संरचना कर श्री महावीराय नमः तथा दरवाजे के बायें-दायें शुभ-लाभ लिखना चाहिए। ___ दरवाजे के बायें-दायें सुहागिन महिला से हस्त छाप (क्रमशः दो एवं तीन) लगवाकर मंगल कलश, दीपक एवं मंगल द्रव्य के साथ णमोकार मंत्र पढ़ते हुए वास्तु निर्माता दंपति को गृहप्रवेश करना चाहिए।