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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 ___ पहले लोग अशुद्ध पदार्थों के उपयोग से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय करते थे। १. भवन निर्माण के लिए पानी छानकर उपयोग करते थे।इम्फाल निवासी
एक व्यक्ति ने बताया कि उनके पिता बड़े धार्मिक थे और उन्होंने
राजस्थान स्थित मकान का निर्माण स्वयं पानी छानकर करवाया था। २. ईंट और रेत को पानी में धुलकर निर्माण कार्य में उपयोग करते थे। ३. प्रायः मांसाहारी कारीगरों, मजदूरों को काम पर नहीं लगाते थे ताकि
वैचारिक शुद्धि बनी रहे। ४. वास्तु निर्माण में सहायक सामग्री भी ऐसे दुकानदारों से नहीं खरीदते
थे जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हिंसा करते हों या हिंसा में विश्वास रखते हों। एक और भी कारण वास्तुशांति के लिए बनता है और वह यह है कि वास्तुनिर्माण से पूर्वखाली भूमि पर लोग कचरा आदिडालते हैं।वहाँव्यन्तरादिक भी अपना निवास स्थान बना लेते हैं। इसलिए वास्तु निर्माण के बाद गृह प्रवेश से पूर्व उसके शुद्धिकरण हेतु वास्तुशांति आवश्यक है। वास्तु शांतिगृहस्थाचार के अनुसार व्यक्तियों के निवास के लिए घर होना चाहिए।यह घर विकृतियों से और सुख शांति देना वाला होना चाहिए।उसमें रहनेवाले निवासियों में परस्पर सौजन्य, आदर, सम्मान, प्रेम, अतिथि सत्कार की भावना, वात्सल्य तथा कार्य करने में उत्साह होना चाहिए।यह स्थिति बनाने के लिए गृह-प्रवेश से पूर्व वास्तु शांति आवश्यक होती है। यह पद्धति प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत के एक प्रसंग से ज्ञात होता है कि जब दुर्योधन ने इन्द्रप्रस्थ में अपना भवन बनाया तो गृहप्रवेश के अवसर पर पाण्डवों को आमंत्रित किया। इससे वास्तु शांति कराने की प्राचीन परम्परा का पता चलता है। वास्तु शांति देव,शास्त्र, गुरु एवं गृहस्थाचार्य की सन्निधि में एवं परिवारी तथा सामाजिकजनों की उपस्थिति में मंगल वातावरण में करना चाहिए।
वास्तुशांति के दिन श्रीशांतिनाथ मण्डल विधान तथा भक्तामर पाठ,मंत्र जाप, हवन करना चाहिए तथा उक्त क्रियाओं के पश्चात् गाजे बाजे के साथ गृह दंपति को श्री जिन मंदिर से मंगल कलश लाकर स्वस्ति वाचन के साथ