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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013
आवश्यक है।अतःहम कह सकते हैं कि एक सामाजिक मनुष्य के लिए वास्तु आवश्यक है।अतः वास्तु संरचना के बाद उसमें प्रवेश करने से पहले वास्तुशांति कर/करा लेना आवश्यक है ताकि आपके वैयक्तिक, भौतिक एवं सांसारिक विकास में आपका वास्तु आपका सहायक बन सके। वास्तु निर्माण में सद् एवं असद् विचारों का मेलजब कोई व्यक्ति वास्तु निर्माण करता है तो उसके विचार सद् होते हैं। उसमें अत्यन्त उत्साह होता है और वहचाहता है कि निर्माणकार्य में जितनी भी सामग्री लगे सब अच्छी से अच्छी होना चाहिए। उस समय वह सस्ती या हल्की वस्तुओं के स्थान पर मँहगी और सुन्दर वस्तुओं का उपयोग करता है।वह वास्तु में प्रकाश एवं हवा हेतु यथेष्ट झरोखे, दरवाजे आदि निर्मित करता है।
जब निर्माण कार्य प्रारंभ करता है तो सर्वप्रथम भूमि की शांति कराता है और अपने इष्ट देवता का स्मरण कर उस पर निवास करने वाले देवादिक को संतुष्ट करने का प्रयास करता है।जल,चंदन,शक्कर,घृत,नारियल आदि समर्पित करता है। किन्तु भवन निर्माता की भावना, सोच एवं कार्य के विपरीत वास्तु इंजीनियर, ठेकेदार, कारीगर और मजदूर आदि की सोच, भावना एवं कार्यपद्धति वैसी नहीं होती।उनमें अपने वास्तु निर्माता के प्रति ईर्ष्या, डाह की भावना भी उत्पन्न हो सकती है। मजदूर वर्ग के विचार भी असद् होते हैं। वे वास्तु निर्माण के समय आपस में गाली-गलौज, मारपीट एवं विसंवाद करते हैं।यत्र तत्र मल-मूत्र प्रक्षेपण करते हैं। ऐसी स्थिति में वास्तुका अशुद्ध होना और विपरीत प्रभावकारी होना स्वाभाविक है। ___ वास्तु के निर्माण में जिस सामग्री का निर्माण होता है उस सामग्री के निर्माण में भी अनेक दूषित पदार्थ उपयोग में लाये जाते हैं। हिंसज पदार्थों का भी उनमें उपयोग होता है। उन वस्तुओं के रखने के स्थान भी प्रायः शुद्ध नहीं होते।दूसरे उन पर कुत्ता-बिल्ली आदि जानवर बैठकर उन्हें अपवित्र करते रहते हैं। काला टीकावास्तु निर्माता वास्तु निर्माण करते समय वास्तु को कुदृष्टि से बचाने के लिए निर्माण कार्य के प्रारंभ से लेकर अन्त तक काला घड़ा भवन पर टांग कर रखते हैं या काली लाइन कोयला से बना देते थे।