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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 ४. मार्शल (Marshal) ने कहा कि धन तो केवल साधन मात्र है साध्य तो मानव कल्याण है। धन मनुष्य के लिए है, मनुष्य धन के लिए नहीं। इनके अनुसार-"Economics is a study of mankind in the ordinary business of life; it examines that part of individual and social action which is most closely concented with the attainment and use of the material requisities of well being. Thus it is on the one side a study of wealth; and on the other, and more important side, a part of the study of man."2. अर्थात अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय में मानव जाति का अध्ययन है। इसमें व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जाँच की जाती है जिसका भौतिक सुख के साधनों की प्राप्ति और उनके उपयोग से बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस प्रकार यह एक ओर तो धन का अध्ययन है और दूसरी ओर जो अधिक महत्त्वपूर्ण है, मनुष्य के अध्ययन का एक भाग है। ५. रोशे (Roscher) ने अर्थशास्त्र का उद्देश्य और प्रारंभ मनुष्य माना है। इसके विपरीत लियोनेल रोबिन्स (Lionel Robbins) ने अपनी पुस्तक 'An Essay on the Nature and Significance of Economics Science' में लिखा कि-"Economics is the science which studies human behaviour as a relationship between ends and scare means which have alternative uses" अर्थात् अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन सीमित साधनों जिनके वैकल्पिक उपयोग हो सकते हैं तथा लक्ष्यों के सम्बन्ध के रूप में करता है। अर्थशास्त्र भी कहीं न कहीं धर्मशास्त्र से नियंत्रित होना चाहिए; यह माँग सदा से उठती रही है और वर्तमान में तो अत्यन्त प्रासंगिक हो गयी है। श्रीमती वूटन (Mrs. Wootan) के अनुसार -“एक अर्थशास्त्री के लिए यह अत्यन्त कठिन है कि वह अपनी विवेचना को नैतिकता से पूर्णरूप से वंचित कर दे।" वास्तव में अर्थशास्त्र अर्थ के उत्पादन, संचयन, वितरण के अध्ययन तक ही सीमित नहीं है अपितु वह उसके साध्य की प्राप्ति में सहायक साधन के रूप में भी अपनी भूमिका निभाता है। प्रो. सेम्युलसन के अनुसार- "अर्थशास्त्र में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि समाज में लोग मुद्रा का प्रयोग करके अथवा बिना प्रयोग किये हुए, किस प्रकार विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के लिए उत्पत्ति के दुर्लभ साधनों का प्रयोग करते हैं और इन वस्तुओं को किस प्रकार उपभोग के लिए वर्तमान तथा भविष्य के बीच और समाज के विभिन्न व्यक्तियों तथा समूहों के मध्य वितरित करते हैं। फ्रेजर (Fraser) कहते हैं कि-"एक अर्थशास्त्री जो केवल अर्थशास्त्री है; एक महत्त्वहीन प्राणी है।" यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि उसे अर्थ से आगे बढ़कर अर्थ के सदुपयोग एवं हित पर भी विचार करना चाहिए। ए.सी. पीगू (A.C. Pigou) का मत है कि-"मेरा विचार है कि हम
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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