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________________ अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 33 ने अर्हत पूजा हेतु की थी। इस पर प्राचीन मथुरा जैन स्तूप की आकृति अंकित है जिसमें तोरण, वेदिका तथा सोपान है। मथुरा के कंकाली टीले से एक मूर्ति आर्यवती की मिली थी।डा. अग्रवाल इसका सम्बन्ध महावीर की माता त्रिशला क्षत्रियाणी से बताने की संभावना व्यक्त करते हैं। यह मूर्ति क्षत्रप षोडास के शासनकाल में संवत् ४२ में स्थापित की गई थी। इस मूर्ति का लक्षण यह है कि इसमें देवी आर्यवती को राजपद रूप की देवी के रूप में अंकित किया है तथा छत्र और चंवर लिये दो पार्श्वचर स्त्रियाँ उनकी सेवा कर रही है। __ इस प्रकार जैनधर्म की मूर्तियों के उक्त गंभीर प्रमाणों से उनके लक्षणों को देखकर कोई भी श्रद्धालु या शोधार्थी उनकी पहचान आसानी से कर सकता है। परन्तु यह भी एक कटुसत्य है कि प्राचीन मूर्ति शिल्प के लक्षणों, भावों पर जितने भी ग्रन्थ रचे गये वे या तो संस्कृत में हैं या अंग्रेजी में। ये ग्रन्थ ना तो मिलते हैं ना ही पढ़ने वाले क्योंकि यह एक दुरूह कार्य है। अतः सामान्यजन मूर्तियों की पहचान कर ही नहीं पाता।प्रस्तुत लेख मूर्तिशिल्प के निष्णात्मनीषी विद्वानों से चर्चा कर ही तैयार किया है, ताकि आम पाठक में भी मूर्तियों के प्रति रूचि जाग्रत कर सके। -जैकी स्टूडियो, १३, मंगलपुरा, झालावाड़ - ३४६ ००१ (राजस्थान)
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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