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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013 है। तीर्थकर मूर्तियाँ या तो ध्यानमुद्रा में आसनस्थ अथवा कार्योत्सर्ग मुद्रा में खड़ी दिखायी देती है।उनमें अभय,वरद या अन्य मुद्रा का अभाव होता है,जबकि बुद्ध मूर्तियां अभय मुद्रा में रहती हैं अथवा भूमि स्पर्श, धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा में बैठी हुई या महापरिनिर्वाण मुद्रा में लेटी हुई होती है। इस प्रकार मुद्राओं तथा लक्षणों के आधार पर मूर्तियों की पहचान आसानी से की जा सकती है। __ आयांगपट्ट का शिल्पवैशिष्टय- वासुदेवशरण अग्रवाल ने मथुरा की जैन कला पर विस्तृत एवं गंभीर विवेचना प्रस्तुत की है। उन्होंने अपनी शोध में बताया कि उक्त क्षेत्रीय जैन कला में आयांगपट्ट तीर्थकर मूर्तियाँ, देवी मूर्तियां, स्तूपों के तोरण,शालभंजिका, वेदिका स्तम्भ, उष्णीय आदि मुख्य हैं।आयांगपट्ट मूल रूप से आर्यकपट्ट होता है। अर्थात् पूजार्थ हेतु स्थापित शिलापट्ट, जिस पर स्वास्तिक, धर्मचक्र आदि अलंकरण या तीर्थकर की मूर्तियां स्थापित की गई हो।स्तमप के प्रांगण में इस प्रकार के पूजा शिलापट्ट या आयांगपट्टऊँचे स्थानों पर स्थापित किये जाते थे तथा दर्शनार्थी उनकी पूजा करते थे। मथुरा की जैन कला में इन आयांगपट्टों का अति विशिष्ट स्थान है। उन पर जो अंलकरण की छवि है वह नेत्रों को मोहित कर देती हैं। उदाहरण के लिये सिंहानादिक द्वारा स्थापित आयांगपट्ट पर ऊपर नीचे अष्टमांगलिक चिन्हों का अंकन है। दोनों पार्यों में से एक ओर चक्रांकित ध्वजस्तम्भ व दूसरी ओर गजांकित स्तम्भ है। मध्य में चार त्रिरत्नों के मध्य में तीर्थकर की बद्धपद्मासन मूर्ति है। एक अन्य प्राप्त आयांगपट्ट के मध्य भाग में विशाल स्वस्तिक का अंकन हे तथा उसके स्वास्तिक भाग के गर्भ में लघु तीर्थकर मूर्ति है। ध्यान से देखने पर यह ज्ञात होता है कि स्वास्तिक के आवेषण रूप में सोलह देव योनियों से अलंकृत मण्डल है, जिसके चारों कोणों पर चार मंहोरग मूर्तियां हैं, जबकि नीचे की ओर अष्टमांगलिकचिन्हों की श्रृंखला है।तृतीय आयांगपट्ट के मध्य षोडषाधर्मचक्र का सुन्दर अंकन है तथा इसके चारों ओर तीन मण्डल है जिसके प्रथम मण्डल में सोलह नन्दिपद, दूसरे में अष्टदिक्कुमारिकाएं और तीसरे में कुण्डलित पुष्पकरस्रज कमलों की माला है।चारों कोनों में चार महोरग मूर्तियां है। इस प्रकार का पूजा पट्ट प्राचीन काल में चक्रपट्ट कहलाता था।आयांगपट्ट जैन कला की महत्वपूर्ण निधि है। इसकी स्थापना फल्गुयश नर्तक की पत्नि शिवयशा