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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013
कन्नड़-साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान् पं. के. भुजबली शास्त्री के अनुसार “कन्ती पम्पन समस्येगलु” इन नाम के जो भी पद्य वर्तमान में उपलब्ध होते हैं, वे साहित्य की दृष्टि से अत्यन्त सुन्दर हैं। यहाँ पर उनमें से केवल एक पद्य, जो कि निरोष्ठ्य-काव्य का उदाहरण है, प्रस्तुत किया जा रहा है -
"सुर नगर नागाधीशर। हीरकिरीटाग्रलग्नचरणसरोजा।
धीरोदारचरित्रोत्सारितकलुषौधरक्षिसल्करिनाँ"।। दान-चिन्तामणि अत्तिमव्वेमहासती श्राविका अत्तिमव्वे(१०वीं सदी) न केवल कर्नाटक की,अपितु समस्त महिला-जगत् के गौरव की प्रतीक है।११वीं सदी के प्रारंभ के उपलब्ध शिलालेखों के अनुसार यह वीरांगना दक्षिण-भारत तथा महादण्डनायक वीर नागदेव की धर्मपत्नी थी।उसकेशील, पातिव्रत्य एवं वैदुष्य के कारण स्वयं सम्राट भी उसके प्रति पूज्य-दृष्टि रखते थे।
कहा जाता है कि अपने अखण्ड पातिव्रत्य-धर्म और जिनेन्द्र-भक्ति में अडिग-आस्था के फलस्वरूप उसने गोदावरी नदी में आई हुई प्रलयंकारी बाढ़ के प्रकोप को भी शान्त कर दिया था और उसमें फंसे हुऐ सैकड़ों वीर-सैनिकों एवं अपने पति दण्डनायक नागदेव को वह सुरक्षित वापिस ले आई थी।
कवि चक्रवर्ती रत्न (रत्नाकर) ने अपने अजितनाथपुराण की रचना अत्तिमव्वे के आग्रह से उसी के आश्रय में रहकर की थी। महाकवि रन्न ने उसकी उदाहरतापूर्ण दान-वृत्ति, साहित्यकारों के प्रति वात्सल्य-प्रेम, जिनवाणी-भक्ति,निरतिचार-शीलव्रत एवंसात्विक-सदाचार की भूरि-भूरि प्रशंसा
की है और उसे 'दान-चिंतामणि' की उपाधि से विभूषित किया है। ___ अत्तिमव्वे स्वयं तो विदुषी थी ही, उसने कुछ नवीन-काव्यों की रचना के साथ ही प्राचीनजीर्ण-शीर्णताडपत्रीय पाण्डुलिपियों के उद्धार की ओर भी विशेष ध्यान दिया।उसने उभय-भाषा-चक्रवर्तीमहाकवि पोन्नकृत शान्तिनाथ-पुराण' की पाण्डुलिपिकी१००० प्रतिलिपियोंकराकर विभिन्न शास्त्र-भण्डारों में वितरित कराई थीं।इन सत्कार्योंके अतिरिक्त भी उसने विभिन्न जिनालयों में पूजा-अर्चना हेतु प्रचुर-मात्रा में भूदान किया और सर्वत्र चतुर्विध दानशालाएँ भी खुलवाई थीं।