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अनेकान्त 66/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2013
13 राजा दोरराय को जब यह सूचना मिली, तो उन्होंने अपने परम-विश्वस्त, उदयभाषा-चक्रवर्ती अभिनव-पम्प को उसकी परीक्षा लेने हेतु उसके पास भेजा। वहाँ जाकर पम्प ने उससे जितने भी कवित्व-मय प्रश्न किये,कन्ती ने उन सभी का सटीक उत्तर देकर पम्प को विस्मित कर दिया।दोरराय ने यह सुनकर तथा उसकी अलौकिक काव्य-प्रतिभा से प्रसन्न होकर उसे तत्काल ही अपनी विद्वत्सभाका सदस्य घोषित किया तथा उसे 'अभिनव-वाग्देवी' के अलंकरण से अलंकृत किया।प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ.आर. नरसिंहाचार्य की मान्यता के अनुसार उक्त दोरराय का अपरनाम ही बल्लाल था और उसकी राज्य-सभा में महाकवि अभिनव पम्प,कन्ती आदि प्रसिद्ध कवियत्रियों का जमघट रहता था।
कन्ती की श्रृंखलाबद्ध रचनाएँ वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। कन्ती-पम्पन समस्येगलुइस नाम से कुछ प्रकीर्णक पद्य अवश्य मिलते हैं। उन्हें देखकर यह विदित होता है कि समस्या-पूर्ति करने में वह उसी प्रकार निपुण थी, जिस प्रकार की चम्पा-नरेश कोटिभट्ट श्रीपाल की महारानी (और उज्जयिनि-नरेश राजा पुहिपाल की पुत्री-राजकुमारी) मैनासुन्दरी।
कहा जाता है कि अभिनव-पम्प एवं कन्ती में प्रायःही वाद-विवाद चलता रहता था किन्तु वह पम्प से न तो कभी हार मानने को तैयार रहती थी और नवह कभी उसकी प्रशंसा ही करती थी, यद्यपि भीतर से आदर का भाव अवश्य रखती थी।
एक दिन पम्प ने प्रतिज्ञा की कि वह कन्ती से अपनी प्रशंसा कराकर ही रहेगा।अतः अवसर पाकर कन्ती के पास झूठ-मूठ में ही उसने अपनी मृत्यु का समाचार भिजवा दिया। इस दुःखद समाचार को सुनकर कुन्ती बड़ी दुःखी हुई।तुरन्त ही वह उनके आवास पर पहुँची और वहीं दरवाजे के ही बाहर बैठकर वह रुदन करने लगी और कहने लगी-हे कविराय, हे कवि पितामह, हे कविकण्ठाभरण, हे कवि शिखामणि, कार्य, अब मेरे जीवन की सार्थकता ही क्या रही? जब मेरे गुणों की प्रशंसा करने वाला ही संसार से उठ गया।अभिनव-पम्प जैसे महाकवि से ही दरबार की शोभा थी।उनका काव्य-सुषमा के साथ-साथ मेरा भी कुछ विकास हो रहा था।थोड़ी ही देर में पम्प हंसता हुआ बाहर आया
और कन्ती से बोला कि-हे प्रिय कवियित्री, आज मेरा प्रण पूरा हो गया है क्योंकि तुमने मेरे घर पर आकर मेरी प्रशंसा की है।किन्तु धन्य है वह कन्ती, जो नाराज होने के बदले उन्हें अपने सम्मुख साक्षात् देखकर प्रफल्लित हो उठी।