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________________ अनेकान्त 66/1, जनवरी-मार्च 2013 गरूढ़, गन्धर्व, यक्षेत्, कुबे वरूण, भृकुटि, गोमेध, पार्श्व व मातंग का निर्माण उनकी विशेषताओं के साथ है ताकि उन के भेद आसानी से किया जा सके। इसी तरह कुछ शासन देवता (यक्षिणी) का विवरण निम्नांकित है - (१) चक्रेश्वरी - यह प्रथम जैन तीर्थङ्कर ऋषभदेव की यक्षिणी है। इसका वर्ण सुवर्ण के समान है, वे पद्मासन मुद्रा में गरूड़ पर बैठी हो तथा उनके छह पैर एवं १२ भुजाएँ हो, जिनमें आठ हाथों में चक्र, दो में वज़ धारण किये हो और शेष २ में मातुलिंग एवं अभय मुद्रा युक्त हो। मूर्तिकला में यक्षिणी चक्रेश्वरी की मूर्तियाँ प्रचुर संख्या में उपलब्ध है। ऐसी मूर्ति चित्तौड़गढ़ में पद्मिनी महत्व के निकट बने जलाशय की दीवार पर उत्कीर्ण देखी जा सकती है। (२) रोहिणी - इसका उल्लेख अपराजिता नाम से भी हुआ है। वर्ण गीता और वाहन गोधा हो, उनके चारों हाथ वरदमुद्रा, पाश, अंकुश एवं बीजपूरक से युक्त हो। (३) कालिका (शांता) - यह सुपार्श्वनाथ की यक्षिणी है। कलिका कृष्णवर्ण, अष्ठभुज, और महिष पर विराजमान हो। इनके हाथ क्रमशः त्रिशूल, पाश, अंकुश, धनुष, बाण, चक्र व अभयमुद्रा युक्त हो।' (४) अम्बिका - नेमिनाथ की यक्षिणी जिसकी दो भुजाएँ हो वर्ण हरित हो, वे सिंह पर आसीन हो उनकी दोनों हाथ फल व वरद मुद्रा से युक्त हो। क्रोड़ में एक शिशु उपासना करता उपस्थित हो। (५) पद्मावती - पार्श्वनाथ की यक्षिणी रक्तवर्णी चतुर्भुजी, पद्मासना और कुवकुतस्या युक्त हो। हाथ क्रमशः पाशे अंकुश पदम और वरदमुद्रा युक्त हो। ऐसी मूर्ति देवगढ़ की बाह्य भित्ति पर उत्कीर्ण देखी जा सकती है। यह लक्ष्मी के रूप में बनाई गई है। इनके अलावा अन्य यक्षिणीयाँ है जिनके नाम :- प्रज्ञावती, वजश्रृंखला (कलिका), नरक्षता (मताकाली), मनोवेगा (श्यामा), भृकुटी (डवालामालिनी), महाकाली (सुताइका), मानवी (अशोका), गौरी (मानवी), (गान्धारी चण्डी), विराटा (विदिता), अनन्तमति, मानसी, निर्वाणी, जया (बला), विजया, अपराजिता (धरणाप्रिया), बहुरूपा, चामुण्डा (गन्धर्वा), सिद्धायिका है। इनके भी विशेष लक्षण बताये गये है। जिनके आधार पर भारतीय मूर्तिकला में इनकी प्रतिमायें बनाई गई है। यक्ष-यक्षणीयों के अतिरिक्त जैन प्रातिहारों, इन्द्र, इन्द्रजय, महेन्द्र, विजय, धरणेन्द्र, पद्मक, सुनाभ और सुरदुन्दुभि के निर्माण प्रतीक का भी संकेत शास्त्रों में निहित है जिसके आधार पर इनकी भी प्रतिमाएँ बनी है। विभिन्न प्रातिहार मूर्तियाँ सतनीस देवरी नामक जैन मन्दिर केप्रवेश द्वारों पर तथा दो जैनकीर्तिस्तम्भ के निकट स्थित महावीर मन्दिर के प्रवेश द्वार पर है। जैन देव परिवार में तीर्थङ्करों के रक्षक के रूप में जो यक्ष-यक्षिणी या देव तथा देवी आकृतियाँ बनी है वह लक्षणों में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिलिपि प्रतीत होती है। इनके अतिरिक्त जैन धर्म
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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