SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 जैनधर्म का मूलाधार अहिंसा है। अहिंसा केवल धर्म या दर्शन नहीं अपितु जीवन जीने की समग्र शैली है। जैन ऋषियों ने अहिंसा को अनेक पहलुओं से देखा, पर्यावरण विज्ञान उनमें से एक है। अहिंसा से तात्पर्य केवल बाह्य शरीर की हिंसा का अभाव नहीं है अपितु मन, वचन और कर्म से किसी जीव को आघात तक नहीं पहुँचाना है। इस भावना से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और प्राणी जगत की रक्षा से अहिंसा के द्वारा सभी प्रकार के प्रदूषण से मुक्ति सम्भव है। पर्यावरण संतुलन का समग्र चक्र वनस्पति पर आधारित है। वृक्ष कार्बनडाई ऑक्साइड ग्रहण कर शुद्ध प्राणवायु ऑक्सीजन के रूप में प्रदान करते हैं। वर्षा चक्र को नियमित करते हैं। अतिवृष्टि के समय जल अवषोषित कर भूमिगत कर देते हैं। प्राणी जगत को पर्याप्त आहार प्रदान करते हैं। ये जल, फल, शुद्ध, ईधन तो देते हैं साथ ही प्राणीमात्र की रक्षा भी करते हैं। प्रत्यक्ष देखा गया है कि गैस त्रासदी, सुनामी, बाढ़ जैसी घोर विपदाओं को पहले स्वयं वृक्षों ने सहन किया तथा मनुष्य और जीवों की रक्षा की। कृषि से खाद्यान्न तथा वन संपदा से प्राप्त ईंधन, लकड़ी, औषधि आदि से अनेक प्रकार के उद्योग धंधे विकसित होते हैं इस दृष्टि से वन संपदा की रक्षा तथा अवैध कटाई पर रोक से पर्यावरण सुरक्षित और अर्थ तंत्र विकसित होगा। __शाकाहार ही श्रेष्ठ आहार है। जैनधर्म में मद्य, मांस और मधु के सेवन और उत्पादन का निषेध किया है। पर्यावरण की दृष्टि से मांसाहार प्रदूषित तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से कुपाच्य, तथा रोगकारी होता है। आर्थिक दृष्टि से देखा जाय तो मांस के उत्पादन और सुरक्षा में अधिक समय, स्थान और धन का व्यय होता है। सामान्यतः कृषि से वर्ष में दो बार आय होती है वही मांस के उत्पादन में वर्षों लगते हैं। वर्तमान में मांस उत्पादन से जलाभाव की समस्या उग्र रूप ले रही है। शोध के आँकड़े बताते हैं कि १ पौंड के उत्पादन में पानी खपत टमाटर के लिए (२३ गैलन), आलू (२४), गेहूँ (२५), गाजर (३३), सेवफल (४९), संतरे (६५), अंगूर (७०), दूध (१३०), अण्डे (५००), सूअर मांस (१६३०), गोमांस (५२१४ गैलन) होती है। ___ भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। कृषि में बैल उर्जा के स्रोत हैं। भोजन में प्रोटीन का प्रमुख माध्यम दूध है। भारत में ८० मिलियन ढुलाई करने वाले पशुओं से ४० मिलियन हार्स पावर शक्ति मिलती है, जो १०,००० मेगावाट विद्युत उर्जा के बराबर है।६ पशु दूध के अतिरिक्त, मल-मूत्र के रूप में खाद तथा अमूल्य श्रम देकर आर्थिक विकास में बहुमूल्य योगदान करते हैं। इनका पालन तो कृषि के उपोत्पादन से ही हो जाता है। इसमें विशेष खर्च नहीं होता। ऐसी स्थिति में पशु संपदा का संहार किया जाता है तो यह अर्थतंत्र और पर्यावरण का संहार है। जैनाचार में प्राणियों की रक्षा के लिए विस्तार से निर्देश किया है। उनके अंगों के छेदन, बंधन, उन्हें मारना, शक्ति से अधिक भार लादना, अपर्याप्त आहार देना, समय पर आहार न देना आदि का निषेध कर पशु सृष्टि के संरक्षण और संवर्धन का मार्ग प्रशस्त किया है।
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy