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अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 विघ्नकारी वेदना होने पर -
क्षपक के कर्मोदय से, यदि तीव्र वेदना होवे, वह व्याकुल होकर कुछ भी बकने लगे, संयम से च्युत हो असंयम में ही भोजन पान माँगने लगे, तो आचार्य पहिले उपचार कर वेदना दूर करने का उपाय करता है, पसीना लाना, एनिमा, लेप लगाना, मालिश, अंगमर्दन या जलसेवन आदि उपायों से वेदना शान्त करे। असंयम च्युत होते देख उसे पिछली बातों का स्मरण कराना चाहिए ताकि उसका यथार्थ ज्ञान लौट आवे। आचार्य वात्सल्य भाव से अनुकूल उपेदश देता रहे। अतीत में तुमने परवश होकर बहुत वेदनाएँ सहीं तो इस समय धर्म मानकर अपनी इच्छाशक्ति से इनको सहन करो। हे क्षपक ! तुमने अर्हन्तदेव की साक्षीपूर्वक व्रत लिए हैं, उन्हें भंग करना ठीक नहीं है। शरीर से ममत्त्व त्यागो। वह समभावी बने रहने के लिए बराबर प्रियवचन कहता रहे।
समाधिमरण करने वाला क्षपक - प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और सामयिक (कायोत्सर्ग) करता हुआ, देह व आत्मा को पृथक पृथक अनुभव करे। तथा क्रमशः काय व कषाय को क्षीण करता हुआ यह विचार करे कि -
भीतर बैठे आत्मदेव हैं, काया तो मंदिर है। सामयिक में शेष रह गया, केवल अजर-अमर है।
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- निदेशक, वीर सेवा मंदिर २१ दरियागंज, नई दिल्ली-११०००२