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________________ 90 अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 क्षपक के कर्त्तव्य (१) क्षपक को सम्पूर्ण सुख शीलता का त्याग कर परीषहों को सहने का भीतर से संकल्प रूप शक्ति बढ़ावे। सुखशील मुनि भोजन, उपकरण और वसति का शोधन नहीं करता। (२) क्षपक को ऋद्धि रस और सात गारव को नष्ट करके, राग-द्वेष का मर्दन करके आलोचना से आत्म-शुद्धि करे । (३) आचार्य के समक्ष अपने अपराध का निवेदन कर प्रायश्चित के लिए कहे। क्योंकि प्रायश्चित से चित्त की शुद्धि होती है । जैसे निपुण वैद्य रोगी होने पर दूसरे वैद्य से इलाज करवाता है उसी प्रकार प्रायश्चित विधि को जानकर भी अपनी विशुद्धि के लिए पर की साक्षी पूर्व प्रायश्चित लेता है। (४) क्षपक को मिथ्यादर्शन शल्य, माया शल्य, निदान शल्य अथवा भाव व द्रव्य शल्य को गुरु की साक्षी में निकाल देना चाहिए। जो मुनि शल्य सहित मरण करते हैं, वे दुर्गति में जाते हैं। (५) जैसे बालक कार्य हो या अकार्य हो सरल भाव से कह देता है, कुछ छिपाता नहीं है। वैसे ही क्षपक मनोगत कुटिलता और वचनगत झूठ को त्यागकर अपना अपराध स्वीकार कर लेता है। निर्यापकाचार्य का क्षपक को अंतिम उपेदश (कर्ण जाप) निर्यापकाचार्य संस्तरारूढ़ क्षपक को संसार से भय और वैराग्य उत्पन्न करने वाली शिक्षा उसके कान में देते हैं - - i. मिथ्यात्व का त्याग करो। श्रुतज्ञान में सदा उपयोग लगाओ । क्रोधादि कषायों का निग्रह करो । ii. ज्ञान के बिना चित्त निग्रह नहीं होता। अतः हे क्षपक ! तुम ज्ञानोपयोग में चित्त को लगाओ। गुप्तियाँ पापों को रोकतीं हैं अतः तुम निरन्तर ध्यान - स्वाध्याय में रहकर त्रियोग में सावधान रहो। iii. अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह महाव्रतों की पाँच-पाँच भावनाओं को निरन्तर स्मरण करते हुए इनकी भावना भाते रहो जिससे व्रतों में दोष न लगने पावे। iv. घोर तपस्वी भी भोगों का निदान करके, अपना मुनिपद नष्ट कर संसार बढ़ाता है। जैसे केले के तने में कुछ सार नहीं है ऐसे ही ये भोग है । अतः भोगों का निदान छोडो। v. निद्रा पर विजय प्राप्त करो। vi. सुख और शरीर में आसक्त मत होओ। तप तपो, थोड़ा भी तप वट-बीज की तरह बहुत फल देता है। उक्त शिक्षा से क्षपक का मन शान्त होकर प्रसन्नता से खिल उठता है।
SR No.538066
Book TitleAnekant 2013 Book 66 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2013
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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